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आगम
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१५], -------------- उद्देशक: [२], -------------- दारं [-], ------------- मूलं [१९९] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१९९]
याः मलय०वृत्ती.
भागोन-लोकाकाशमात्रखण्डहीनं सकलाकाशप्रमाणं इति भावः ॥ इति श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रज्ञापनाटीका-१५ इन्द्रियामिन्द्रियपदस्योद्देशक: प्रथमः समाप्तः॥१॥
यपदे उद्देश:२
॥३०८॥
गाथा:
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दीप अनुक्रम [४३३-४३५]]
व्याख्यातः प्रथमः उद्देशकः, सम्प्रति द्वितीय आरभ्यते-तत्रेदमादावर्थाधिकारसङ्ग्राहकं गाथाद्वयंइंदियउवचय १ णिवत्तणा २ य समया भवे असंखेज्जा ३ । लद्धी ४ उचओगई ५ अप्पाबहुए विसेसहिया ॥१॥ ओगाहणा ६ अवाए ७ ईहा ८ तह वंजणोग्गहे ९-१० चेव । दबिंदिय ११ भाविदिय १२ तीया बद्धा पुरक्खडिया ॥२॥ कतिविहे ण भंते ! इंदियउवचए पं०, गो०! पंचविहे इंदियउवचए पं०१, ०-सोतिदिए उवचते चक्खिदिए उवचते पाणिदिए उवचते जिभिदिए उवचते फासिदिए उवचते । नेरइयाणं भंते ! कतिविहे इंदिओवचएपं०१, गो०! पंचविहे इंदिओवचए पं०, तं०-सोसिदिओवचए जाव फार्सिदिओवचए, एवं जाव वेमाणियाणं जस्स जब इंदिया तस्स ततिविहो चेव इंदिओवचओ भाणियो १ । कतिविहा गं भंते! इंदियनिवत्तणा पं०१, गो! पंचविहा इंदियनिवत्तणा, पं० तं०-सोतिदियनिव्वत्तणा जाव फासिदियनिव्वत्तणा, एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, णवरं जस्स जइ इंदिया अस्थि २। सोतिदियणिवत्तणा पं भंते ! कइसमइया, पं०१, मो०! असंखिज्जइसमया अंतोमुहुत्तिया पं०, एवं जाव फासिंदियनिबत्तणा, एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ३ । कइविहा गं भंते ! इंदिवलद्धी पं०१, गो! पंचविहा इंदियलद्धी पं०,
॥३०८॥
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अथ (१५) इन्द्रिय-पदे उद्देशक- (२) आरभ्यते ...ईन्द्रियउपचय आदि द्वादश-विषयस्य प्ररुपणा
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