SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१३], ---------- उद्देशक: -, ---------- दारं , ---------- मूलं [१८४-१८५] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१८४-१८५] गाथा: (मर्च १८४) बंधणपरिणामेण भंते! कतिविधे पं०१, गो! दुविहे पं०, तं-णिबंधणपरिणामे लुक्खबंधणपरिणामे य,-'समणिद्धयाए बंधो न होति समलुक्खयाएविण होति । वेमायणिद्धलुक्खत्तणेण बंघो उ खंधाणं ॥१॥ णिद्धस्स णिद्धेण दुयाहिएणं, लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं । निद्धस्स लुक्खेण उवेइ बंधो, जहण्णवज्जो विसमो समो वा ।। २॥2, गतिपरिणाम ण भंते ! कतिविधे पं०१, गो.! दुविहे पं०, तं०-फुसमागगतिपरिणामे य अफुसमाणगतिपरिणामे य, अहवा दीहगइपरिणामे य हस्सगइपरिणामे य २, संठाणपरिणामे णं भंते ! कतिविधे पं०१, गो.! पंचविधे पण्णचे, तं-परिमंडलसंठाणपरि० जाप आयतसंठाणपरिणामे ३, भेदपरिणामे ण भंते ! कतिविधे पं०१, गो०। पंचविधे पं०,०-खंडभेदपरि० जाव उकरियाभेदपरि०४, वग्णपरिणामे थे भंते ! कतिविधे पं०१, गो.1 पंचविधे पं०, त-कालवण्णप० जाव सुकिलवण्णपरि० ५, गंधपरिणामे णं भंते ! कतिविधे प०१, गो! दुविहे पं०,०सुब्भिगंधपरि० दुभिगंधपरिणामे य ६, रसपरिणामे ण भंते ! कतिविधे पं०१, गो० ! पंचविहे पं०, ०-तित्तरसपरिणामे जाव महुररसपरिणामे ७, फासपरिणामे णं भंते ! कतिविधे पं०१, मो०! अविधे पं०, तं०-कक्खडफासपरिणामे य जाव लुक्खफासपरिणामे य ८,अगुरुलहुयपरिणामेणं भंते कतिविहे पं०१, मो० एगागारे पं०१, सहपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पं०१, मो० दुविहे पं० तंजहा-सुन्भिसद्दपरिणामे य दुन्भिसहपरिणामे य १० सेचं अजीवपरिणामे य (सूत्रं १८५) परिणामपदं समतं ॥१३॥ 'बंधणपरिणामे णं भंते !' इत्यादि, स्निग्धवन्धनपरिणामश्च रूक्षबन्धनपरिणामश्च, तत्र स्निग्धस्य सतो बन्धनप-18 दीप अनुक्रम [४०८ -४१२] SAREauratonintenariand | 'बन्ध' आदि परिणामस्य प्रभेदा: ~179~
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy