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________________ आगम (१५) [भाग-१८] “प्रज्ञापना" - पदं [५], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [१०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: श्रीप्रज्ञापनोपाङ्गे पञ्चमं पर्यायपदं । प्रत सूत्रांक [१०३]] सररररteeseeeeee दीप अनुक्रम [३०७] तदेवं व्याख्यातं चतुर्थ पदं, इदानी पञ्चममारभ्यते-तस्य चायमभिसम्बन्धः-इहानन्तरपदे नारकादिपर्यायरूपेण सत्त्वानामवस्थितिरुक्ता, इह त्वौदयिकक्षायोपशमिकक्षायिकभावाश्रयपर्यायावधारणं प्रतिपाद्यते, तत्र चेदमादिसूत्रम् कइविहा ण भंते ! पजवा पनत्ता, गोयमा दुविहा पजवा पन्नचा, तंजहा-जीवपजवाय अजीवपअवा य । जीवपञ्जवाणं भंते! किं संखेजा असंखेजा अर्णता?, गोयमा! नो संखेज्जा नो असंखेज्जा अणंता, से केणडेणं भंते! एवं वुच्चइ-जीवपजवा नो संखेजा नो असंखेज्जा अणंता ?, गोयमा ! असंखिज्जा नेरइया असंखिज्जा असुरकुमारा असंखिज्जा नागकुमारा असंखिज्जा सुवण्णकुमारा असंखिज्जा विज्जुकुमारा असंखिज्जा अगणिकुमारा असंखिज्जा दीवकुमारा असंखिज्जा उदहिकुमारा असंखिज्जा दिसीकुमारा असंखिज्जा बाउकुमारा असंखिज्जा थणियकुमारा असंखिज्जा पुढविकाइया असंखिज्जा आउकाइया असंखिज्जा तेउकाइया असंखिज्जा वाउकाइया अणंता वणप्फइकाइया असंखेजा बेईदिया असंखेजा तेइंदिया असंखेजा चउरिदिया असंखेजा पंचिदियतिरिक्खजोणिया असंखेजा मणुस्सा असंखेजा वाणमंतरा असंखेआ जोइसिया असंखेआ वेमाणिया अर्णता सिद्धा, से एएणडेणं गोयमा एवं बुचइ-तेणंनो संखिजानो असंखिज्जा अणंता ॥(सूत्र१०३) अथ पद (०५) "विशेष" आरभ्यते पर्यायपदे जीव-पर्याय: ~369~
SR No.035018
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 18 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages426
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size93 MB
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