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आगम
(१५)
प्रत
सूत्रांक
[२]
दीप
अनुक्रम [२९६ ]
[भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्ति:)
मूलं [१२]
पदं [३], --------------उद्देशक: [ - ], दारं [२७], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र [१५],उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः
प्रज्ञापनायाः मल
य० वृत्तौ.
॥ १६०॥
पट्टयाए संखिञ्जपएसोगाढा पोग्गला पएसइयाए संखिजगुणा असंखिज्जपएसो गाढा पुग्गला पएसहयाए असंखेज्ज - गुणा दवस या सवत्थोवा एगपएसोगाढा पुग्गला दबट्ठपएस याए संखिजपएसोगाढा पुग्गला दबट्टयाए संखिअगुणा ते चैव पएस याए संखिजगुणा असंखिजपएसोगाढा पुग्गला दबट्टयाए असंखिजगुणा ते चेन परसट्टयाए असं खिजगुणा । एएसि णं भन्ते ! एगसमयठियाणं असंखिञ्जसमयठियाणं पुग्गलाणं दवडयाए परसट्टयाए दट्ठपएसइयाए कमरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा १, गोयमा ! सबत्थोवा एगसमयठिझ्या पुग्गला दवया संखिजसमयठिया पुग्गला दबट्टयाए संखिञ्जगुणा असंखिजसमयरिया पुग्गला दबट्टयाए असंखिजगुणा पएससवत्थोवा एगसमयठिया पुग्गला परसट्टयाए संखिअसमयठिया पुग्गला पएसइयाए संखेञ्जगुणा असंखिजसमafter पुग्गला पसाए असंखेज्जगुणा दवदृपएसट्टयाए सबत्थोवा एगसमयठिया पुग्गला दबडपएसइयाए संखिसमयठिया गला दबाए संखिजगुणा ते चैव पएसट्टयाए संखिजगुणा असंखिञ्जसमयठिड्या पुग्गला दुबइयाए असंखिजगुणा ते चैव पट्टयाए असंखिजगुणा । एएसि णं भंते एगगुणकालगाणं संखिजगुणकालगाणं असंखिजगुकालगाणं अनंतगुणकालगाण य पुग्गलाणं दबट्टयाए पएसमाए दबपएसइयाए य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुला वा विसेसाहिया वा १, गोयमा ! जहा पुग्गला तहा भाणिया, एवं संखिञ्जगुणकालगाणवि, एवं सेसावि वण्णा गंधा रसा फासा भाणियचा, फासाणं कक्खडमउयगुरुथलहुयाणं जहा एगपएसोगाढाणं भणियं तहा भाणियां | अवसेसा फासा जहा बना तहा भाणिया | दारं (सू० ९२ )
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~332~
३ अल्प
बहुत्वपदे द्रव्यक्षेत्रकालमा
वाल्प. सू. ९२
॥ १६०॥