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आगम
(१५)
[भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
पदं [३], --------------- उद्देशक: -1, -------------- दारं [२५], -------------- मूलं [८४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सुत्राक
[८४]
दीप
खेत्ताणुवाएणं सवत्थोवा भवणवासी देवा उडलोए उडलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणा तेलोके संखेजगुणा अहोलोयतिरियलोए असंखेजगुणा तिरियलोए असंखेजगुणा अहोलोए असंखेजगुणा । खेत्ताणुवाएणं सत्वत्थोवाओ भवणवासिणीओ देवीओ उडलोए उडलोयतिरियलोए असंखेजगुणाओ तेलोके संखेजगुणाओ अहोलोयतिरियलोए असंखेजगुणाओ तिरियलोए असंखेजगुणाओ अहोलोए असंखेजगुणाओ॥ खेचाणुवाएणं सबत्थोवा वाणमंतरा देवा उडलोए उडलोयतिरियलोए असंखेजगुणा तेलोके संखेजगणा अहोलोयतिरियलोए असंखेजगुणा अहोलोए संखेजगुणा तिरियलोए संखेजगुणा । खेचाणुवाएणं सवत्थोवाओ चाणमंतरीओ देवीओ उडलोए उडलोयतिरियलोए असंखेजगुणाओ तेलोके संखेजगुणाओ अहोलोयतिरियलोए असंखेजगुणाओ अहोलोए संखेजगुणाओ तिरियलोए संखेजगुणाओ ॥खेचाणुबाएणं सबथोवा जोइसिया देवा उडलोए उडलोयतिरियलोए असंखेजगुणा तेलोके संखेजगुणा अहोलोयतिरियलोए असंखेजगुणा अहोलोए संखेजगुणा तिरियलोए असंखेजगुणा । खेत्ताणुवाएणं सवत्थोवाओ जोइसिणीओ देवीओ उड्डलोए उडलोयतिरियलोए असंखेजगुणाओ तेलोके संखेजगुणाओ अहोलोयतिरियलोए असंखेजगुणाओ अहोलोए संखेअगुणाओ तिरियलोए असंखेजगुणाओ॥ खेत्ताणुवाएणं सवत्थोवा वेमाणिया देवा [अन्याय०२०००] उड्डलोयतिरियलोए तेलोके संखेजगुणा अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणा अहोलोए संखिजगुणा तिरियलोए संखेजगुणा उडलोए असंखिजगुणा । खिचाणुवाएणं सत्वत्थोवाओ वेमाणिणीओ देवीओ उड्डलोयतिरियलोए तेलोके संखेजगुणाओ अहोलोयतिरियलोए संखेजगुणाओ अहोलोए संखेजगुणाओ तिरियलोए संखेजगुणाओ उडलोए असंखेजगुणाओ (मु०८४)
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अनुक्रम [२८८]
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