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आगम
(१५)
[भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
पदं [३], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [२५], -------------- मूलं [८२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
सूत्राक
यवृत्ती.
[८२]
दीप
प्रज्ञापना-याना च भागानामुद्वर्तनायाश्च संभपात , तेभ्योऽधोलोके-अधोलोकवर्त्तिनो विशेषाधिकाः, ऊर्द्धलोकक्षेत्रादधो-18 लोकक्षेत्रस्य विशेषाधिकत्वात् । तदेवं सामान्यतो जीवानां क्षेत्रानुपातेनाल्पबहुत्वमुक्तम् , इदानीं चतुर्गतिदण्डक-|
बहुत्वपदे । क्रमेण तदभिधित्सुः प्रथमतो नैरयिकाणामाह
गत्यपेक्ष
याऽल्प० ॥१४५॥ खेत्ताणुवाएणं सबत्थोवा नेरइया तेलोके अहोलोयतिरियलोए असंखेजगुणा, अहोलोए असंखेजगुणा ॥ खेत्ताणुचाएणं
सूत्रं. ८३ सवत्थोवा तिरिक्खजोणिया उहलोयतिरियलोए अहोलोयतिरियलोए बिसेसाहिया तिरियलोए असंखेजगुणा तेलोके असंखेज्जगुणा उहलोए असंखेजगुणा अहोलोए विसेसाहिया। खेत्ताणुवाएणं सवत्थोवाओ तिरिक्खजोणिणीओ उडलोए उहुलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणाओ तेलोके संखेजगुणाओ अहोलोयतिरियलोए संखेज्जगुणाओ अहोलोए संखेजगुणाओ तिरियलोए संखेजगुणाओ ।।खेत्ताणुवाएणं सत्वत्थोवा मणुस्सा तेलोके उद्दलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणा अहोलीयतिरियलोए संखेज्जगुणा उड्डलोए संखेजगुणा अहोलोए संखेज्जगुणा तिरियलोए संखेज्जगुणा । खेत्ताणुवाएणं सवत्थोवा मणुस्सीओ तेलोके उड्डलोयतिरियलोए संखेजगुणाओ अहोलोयतिरियलोए संखेज्जगुणाओ उड्डलोए संखेजगुणाओ अहो- ॥१४५॥ लोए संखेजगुणाओ तिरियलोए संखेजगुणाओ ॥ खेत्ताणुवाएणं सत्वत्थोवा देवा उड्ढलोए उडलोयतिरियलोए असंखेजगुणा तेलोके संखेजगुणा अहोलोयतिरियलोए संखेज्जगुणा अहोलोए संखेजगुणा तिरियलोए संखेजगुणा । खेत्ताणुवा
अनुक्रम [२८६]
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