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आगम
(१५)
प्रत
सूत्रांक
[ ५४ ]
+
गाथा:
दीप
अनुक्रम
[२३५
-२५६]
[भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्ति:)
पदं [२],
------------- FÈRT: [-], ---------- ¿T2 [-], ------------ - मूलं [ ५४ ] + गाथा : (१५०-१७०) पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः
प्रज्ञापनायाः मल
य० वृत्तौ .
॥१०६ ॥
Eucation Th
अभिवा पडिवा, ईसीप भाराए णं पुढवीए सीआए जोयणम्मि लोगंतो तस्स णं जोयणस्स जे से उबरले गाउ तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिछे छन्भागे एत्थ णं सिद्धा भगवंतो साइया अपज्जवसिया अणेगजाइजरामरणजोणिसंसारकलंकली भावपुण भवगन्भवासवसहीपर्वचसमइकंता सासयमणागवद्धं कालं चिट्ठति, तत्थवि य ते अवेया अवेयणा निम्ममा असंगा य संसारविष्यमुक्का पएसनिवत्तसंठाणा । कहिं पहिया सिद्धा, कहिं सिद्धा पट्टिया । कहिं बोंदिं चत्ता णं, कत्थ गंतूण सिज्झइ १ ॥ १५० ॥ अलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइद्विया । इहं बौदि चहत्ता णं, तत्थ गंतूण सिज्झइ ॥ १५१ ॥ दीहं वा हस्सं वा जं चरिमभवे हविज्ज संठाणं । तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥ १५२ ॥ जं संठाणं तु इदं भवं चयंतस्स चरिमसमयंमि । आसी य पदेसघणं तं संठाणं तर्हि तस्स ॥ १५३ ॥ तिन्नि सया तित्तीसा धणुत्तिभागो य होइ नायवो । एसा खलु सिद्धाणं उकोसोगाइणा भणिया ॥ १५४ ॥ चत्तारि य रयणीओ रयणी विभागूणिया य बोद्धवा । एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिया ॥ १५५॥ एगा य होइ रयणी अद्वेव य अंगुलाई साहि (ब) या । एसा खलु सिद्धाणं जहनओगाहणा भणिया ।। १५६।। ओगाहणाइ सिद्धा भवतिभागेण होंति परिहीणा । संठाणमणित्थंथं (ग्रन्था० १५००) जरामरविप्पमुकाणं ॥ १५७ ॥ जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का | अन्नोऽन्नसमोगाढा पुट्ठा सबैवि लोगंते ॥ १५८ ॥ फुस अनंते सिद्धे सवपसेहिं नियमसो सिद्धा । तेऽवि य असंखिज्जगुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा || १५९|| असरीरा जीवघणा उवत्ता दंसणे य नाणे य । सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥ १६० ॥ केवलनाणुवउत्ता जाणता सवभावगुणभावे । पासंता सबओ खलु केवल दिडीहिताहिं ॥ १६९ ॥ नवि अस्थि माणुसाणं तं सुक्खं नवि य सङ्घदेवाणं । जं सिद्धाणं
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२ स्थान
पदे सिद्धस्थानादि
सू. ५४
॥१०६ ॥
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