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________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [सर्वजीव], ------------------ प्रति प्रति० [९], ------------------- मूलं [२७१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४] उपांगसूत्र-[३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२७१] दीप अनुक्रम [३९७] दितियग्योनिका अनन्तगुणाः । उपसंहारमाह-'सेत्तं नवविहा सधजीवा पण्णत्ता' । उक्ता नवविधाः सर्वजीवाः, सम्प्रति दशविधानाह तत्थ णं जे ते एवमासु दसविधा सम्बजीवा पपणता ते णं एवमाहंसु, तंजहा-पदविकाहया आउकाइया तेजकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया बिंदिया तिदिया चरिं० पं. अणिंदिया ॥ पुढधिकाइए णं भंते ! पुढविकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति?, गोयमा! जह• अंतो. पक्को असंखेज कालं असंखेजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ खेत्तओ असंखेना लोया, एवं आउतेउवाउकाइए, वणस्सतिकाइए णं भंते !०२१, गोयमा! जह• अंतो० उक्को वणस्सलिकालो, दिए भंते!?, जह. अंतो उको संखेजं कालं, एवं तेईदिएवि चउरिदिएवि, पंचिंदिए णं भंते !?, गोयमा! जह० अंतो० उक्को सागरोवमसहस्सं सातिरेग, अणिदिए थे भंते !०१, सादीए अपजवसिए ॥ पुढविकाइयस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवचिटोति?, गोयमा जह० अंतोषको वणस्सतिकालो, एवं आउकाइयस्स तेउ० वाउ०. वणस्सइकाइयस्स भंते ! अंतरं कालओ०१, जा चेव पुढविकाइयरस संचिट्ठणा, वियतियचउरिंदियपंचेंदियाणं एतेर्सि चजण्हंपि अंतरं जह• अंतो० उक्को० वणस्सइकालो, अणिविपस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति?, गोयमा! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ॥ ए. अत्र सर्वजीव-प्रतिपत्ति: ८-नवविधा] परिसमाप्ता अथ सर्वजीव-प्रतिपत्ति: ९-दशविधा] आरब्धा: ~475
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
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