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आगम
(१४)
[भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम" -
प्रतिपत्ति : सर्वजीव], ------------------ प्रति प्रति० [५], ------------------- मूलं [२६३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[२६३]
दीप अनुक्रम [३८९]
तत्थ जे ते एक्माहंसु छविहा सब्बजीया पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तंजहा-आभिणियोहियणाणी सुयणाणी ओहिनाणी मणपजवणाणी केवल नाणी अण्णाणी, आभिणियोहियणाणी णं भंते ? आभिणियोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ?, गोयमा! जह• अन्तोमुहुत्तं उको छावडिं सागरोवमाई साइरेगाई एवं सुयणाणीवि, ओहिणाणी णं भंते!०१, जह० एकं समयं उक्को
जवहिं सागरोषमाई साइरेगाई, मणपज्जवणाणी णं भंते !०१, जह० एक समयं उको देसूणा पुवकोडी, केवलनाणी णं भंते!? सादीए अपजयसिए, अन्नाणिणो तिबिहा पं० २०-अणाइए वा अपजवसिए अणाइए वा सपज्जवसिए साइए वा सपज्जवसिए, तत्थ साइए सपज्जवसिए जह० अंतो० उक्को० अणतं कालं अवडं पुग्गलपरियह देसूर्ण । अंतरं आभिणियोहियणाणिस्स जह० अंतो० उक्को० अणतं कालं अवई पुग्गलपरियह देसूर्ण, एवं सुय० अंतरं० मणपजव०, केवलनाणिणो णस्थि अंतरं, अन्नाणिसाइसपज्जवसियस्स जह० अंतो उको छावर्द्धि सागरोचमाई साइरेगाई। अप्पा० सम्वत्थोवा.मण. ओहि असंखे० आभि सुप०विसेसा० सट्टाणे दोषि तुल्ला केव० अणंत अण्णाणी अणंतगुणा ।। अहवा छब्विहा सव्वजीचा पण्णत्ता तंजहा-(एवंविधः पाठ इतः प्राग आवश्यको न चोपलब्धो दृश्यमानादर्शपु कचिदपि) एगिदिया बेदिया तेंदिया चरिंदिया पंचेंदिया अजिंदिया। संचिट्ठणांतरा जहा हेवा । अप्पाबहु
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