SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 421
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [सर्वजीव], ------------------ प्रति प्रति [१], ------------------- मूलं [२४५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४] उपांगसूत्र-[३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२४५] 6 +- दिया सइंदिया अर्गतगुणा । अहवा दुविहा सबजीवा पणत्ता तंजहा-सकाइया चेव अकाइया चेच एवं घेव, एवं सजोगी चेव अजोगी चेव तहेब, [एवं सलेस्सा चेच अलेस्सा चेव, ससरीरा चेव असरीरा चेच] संचिट्ठणं अंतरं अप्पायहुयं जहा सइन्दियार्ण ॥ अहवा दुविहा सब्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा-सवेदगा चेव अवेदगा चेव ॥ सवेदए णं भंते! सवे ? गोयमा! सवेयए तिबिहे प. पणते, तंजहा-अणादीए अपजवसिते अणादीए सपजवसिए साइए सपजबसिए, तत्थ ण जे से साइए सपजयसिए से जह अंतोमु. उको अर्थतं कालं जाव खेत्तओ अवह पोग्गलपरिपद देसूर्ण ॥ अवेदए णं भंते ! अवेयएत्ति कालओ केवचिरं होइ?, गोयमा! अवेदए विहे पपणत्ते, तंजहा-सातीए वा अपज्जवसिते साइए वा सपजवसिए, तत्थ णं जे से सादीए सपजयसिते से जहणेणं एवं समयं उको० अंतोमुहत्तं ।। सवेयगस्स णं भंते! केवतिकालं अंतर होइ?, अणादियस्स अपजवसियस्स पत्थि अंतरं, अणादियस्स सपज्जवसियस्स नस्थि अंतरं, सादीपस्स सपज्जवसियस्स जहपयोणं एक समयं उक्कोसेर्ण अंतोमुहत्तं ॥ अवेदगस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतर होइ?, सातीयस्स अपज्जवसियस्स पत्थि अंतरं, सातीयस्स सपजबसियस्स जह० अंलोमु 'उकोसेणं अणतं कालं जाच अवर्ल्ड पोग्गलपरियह देसूणं । अप्पायटुगं, सम्वत्थोवा अवेयगा सवेयगा अणंतगुणा । एवं सकसाई चेव अकसाई चेव २ जहा सवे दीप अनुक्रम [३७०] ECTCOCRACKXE ~421
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy