________________
आगम
(१४)
[भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम" -
प्रतिपत्ति : [९], --------------------- उद्देशक: -,--------------------- मूलं [२४३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२४३]
श्रीजीवाजीनाभि मलयगिरीयावृत्तिः
.तिपत्ती प्रथमसमबकादीनां स्थिातकायस्थित्यन्तराल्पबहुत्वानि उद्देशः २
॥४३३॥
उकस्सेणं एगिदियाणं वणस्सतिकालो, बेईदियतेइंदियचउरिदिया संखेनं कालं पंचंदियाणं सागरोवमसहस्सं सातिरेग ।। पढमसमयएगिदियाणं केवतियं अंतर होति ?, गोयमा! जहन्नेणं दो खुट्टागभवग्गहणाई समऊणाई, उक्को० वणस्सतिकालो, अपडमएगिदिय. अंतरं जहपणेणं खुडागं भवग्गहणं समयाहियं उको दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासमभहियाई, सेसाणं सम्बेसिं पढमसमयिकाणं अंतरं जह० दो खुड्डाई भवग्गहणाई समऊणाई उको० वणस्सतिकालो, अपढमसमयिकाणं सेसाणं जहपणेणं खुट्टागं भवग्रहणं समयाहियं 'उको० वणस्सतिकालो ।। पढमसमइयाणं सब्वेसि सव्वत्थोवा पढमसमयपंचे दिया परम चरिंदिया बिसेसाहिया पढमतेइंदिया विसेसाहिया प० बेइंदिया विसेसाहिया प० एगिदिया विसेसाहिया । एवं अपढमसमयिकावि णवरि अपतमसमयएगिदिया अणंतगुणा । दोहं अप्पबहू, सब्वस्थोषा पढमसमयएगिदिया अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा सेसाणं सव्वस्थोचा पढमसमयिगा अपढम० असंखेजगुणा ।। एतेसिणं भंते! पढमसमयएगिदियार्ण अपढमसमयएगिदियाणं जाव अपढमसमयपंचिंदियाण य कयरे २१, सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया पढमसमयचउरिंदिया बिसेसाहिया पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया एवं हेहामुहा जाव पढमसमयएगिदिया विसेसाहिया अपढमसमयपंचेंदिया असंखेजगुणा अपढमसमयचरिंदिया विसेसाहिया जाव
दीप अनुक्रम [३६८]
सू०२४३
JECXI
अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते- एता प्रतिपतौ न कोऽपि उद्देशक: वर्तते, तत् कारणात् अत्र “उद्देश: २" इति निरर्थकम् मुद्रितं
~414