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________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [५], --------------------- उद्देशक: -, ------------------- मूलं [२२९-२३०] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२२९ -२३०] दीप पजत्रागावि ॥ एतेसि णं भंते! पुढविकाइयाणं पजत्तगाण अपज्जत्तगाण य कयरेशहितो अप्पा वा एवं जाव विसेसाहिया?, गोयमा! सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपज्जत्तगा पुढविकाइया पजत्तगा संखेजगुणा, एतेसि पं० सव्वस्थोवा आउक्काइया अपजत्तगा पजत्तगा संखेज्जगुणा जाब वणस्सतिकाइयावि, सब्वस्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा तसकाइया अपजत्तगा असंखेजगुणा । एएसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं जाव तसकाइयाणं पज्जत्तगअपज्जत्तगाण य कयरेशहितो अप्पा वा ४१, सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेनगुणा तेउकाइया अपजत्ता असंखेजगुणा पुढविक्काइया आउक्काइया बाउक्काइया अपजत्तगा विसेसाहिया तेउकाइया पजत्तगा संखेजगुणा पुढविआउवाउपजत्तगा विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अपजसगा अणंतगुणा, सकाइया अपजत्तगा विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया पजसगा संखेज्वगुणा, सकाइया पजत्तगा बिसेसाहिया ॥ (सूत्रं २२९) सुहमस्स गं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णता?. गोषमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उकोसेणवि अंतोमुहत्तं एवं जाव सुहमणिओयस्स, एवं अपज्जत्तगाणवि पज्जत्तगाणवि जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ॥ (सू०२३०) 'एएसि णमित्यादि, सर्वस्तोकाखसकायिकाः, द्वीन्द्रियादीनामेव त्रसकायलात् तेषां च शेषकायापेक्षयाऽल्पवात् , तेभ्यस्तेजस्का-| अनुक्रम [३५१ -३५२] 64962 ~3730
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
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