SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति: [४], --------------------- उद्देशक: -, ------------------- मूलं [२२४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४] उपांगसूत्र-[३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: अथ पञ्चविधजीवाख्या चतुर्था प्रतिपत्तिः। %759-7-% प्रत सूत्रांक [२२४] % --*- 4 + दीप अनुक्रम 04 -- तदेवमुक्ता चतुर्विधा प्रतिपत्तिः, सम्प्रति क्रमप्राप्तां पञ्चविधप्रतिपत्तिमाह तत्थ जे ते एवमाहंसु-पंचविहा संसारसमावणगा जीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं०-एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया से किं तं एगिदिया?, २ विहा पण्णता, तंजहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य, एवं जाव पंचिंदिया दुविहा-पजसगा य अपजसगा य । एगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पणता?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमहत्तं उकोसेणं बावीसं वाससहस्साई, बेइंदिय० जहन्नेणं अंतोमु० उक्कोसेणं बारस संबच्छराणि, एवं तेइंदियस्स एगणपपर्ण राइंदियाणं, चाउरिदियस्स छम्मासा, पंचेंदियस्स जह० अंतोमु० उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरो. बमाई, अपजत्तएगिदियस्स णं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमु० उकोसेणवि अंतो० एवं सब्वेसि, पजत्तेगिंदियाणं णं जाव पंचिन्दियाणं पुच्छा, जहन्नेणं अंतो० उक्को. बाबीसं चाससहस्साई अंतमुहत्तोणाई. एवं उक्कोसियावि ठिती अंतोमुहत्तोणा सब्वेर्सि पजत्ताणं कायब्बा ॥ एगिदिए णं भंते। एगिदिएत्ति कालओ केबचिरं होइ?, गोयमा! जहनेणं अंतोमु. उको वणस्ततिकालो। बेइंदियस्स भंते ! बेइंदियत्ति कालओ केवचिरं होइ?, जह• अंतो * [३४४] - --0 4 -4. अथ चतुर्थी “पञ्चविधा" प्रतिपत्ति: आरब्धा: संसारिजीवानाम् पञ्चविधत्वेन प्ररुपणं- एकेन्द्रियात् पञ्चेन्द्रिय-पर्यन्त जीवाधिकार: आरभ्यते ~363
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy