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आगम
(१४)
[भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/२ (मूलं+वृत्ति:)
प्रतिपत्ति : [३], --------------------- उद्देशक: [(वैमानिक)-२], ------------------- मूलं [२१७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[२१७]
दीप अनुक्रम [३३७]
भगवानाह-गौतम! मनोज्ञा: शब्दा मनोज्ञानि रूपाणि मनोज्ञा गन्धा मनोज्ञा रसा: मनोज्ञाः स्पर्शा: एवरूपं सातसौख्यं प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति, एवं तावद्वाच्यं यावद्वैवेयकदेवाः, 'अणुत्तरोववाइयाण'मित्यादि प्रअसूत्रं सुगम, भगवानाह-गौतम! अनुत्तराः। शब्दा यावदनुतराः स्पर्शाः इत्येवंरूपं सातसौख्य प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति ।। साम्प्रतमृद्धिप्रतिपादनार्थमाह-'सोहम्मी'त्यादि, सौधर्मे-10 शानयोर्भदन्त ! कल्पयोबा: कीडशा ऋजया प्रज्ञप्ता:, भगवानाह-गौतम! महर्द्विका यावन्महानुभागाः, अमीषा पदानां व्याख्यान पूर्ववत्, एवं सावद्वक्तव्यं यावदनुत्तरोपपातिका देवाः ॥ सम्प्रति विभूषाप्रतिपादनार्थमाह
सोहम्मीसाणा देवा केरिसया विभसाए पपणत्ता?, गोयमा! दुविहा पण्णता, तंजहा-बेउवियसरीरा य अवेउब्वियसरीरा य, तत्थ णं जे ते वेउब्वियसरीरा ते हारविराइयवच्छा जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा जाव पडिरूवा, तत्थ णं जे ते अवेउब्बियसरीरा ते णं आभरणवसणरहिता पगतित्था विभूसाए पपणत्ता ॥ सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु देवीओ केरिसियाओ विभूसाए एण्णत्ताओ?, गोयमा! दुविधाओ पपणत्ताओ, तंजहा-वेब्वियसरीराओ य अवेउब्वियसरीराओ य, तत्थ णं जाओ घेउब्वियसरीराओ ताओ सुवण्णसहालाओ सुवण्णसद्दालाई वत्थाई पवर परिहिताओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ सिंगारागारचारुवेसाओ संगय जाव पासातीयाओ जाव पडिरूवा, तत्थ णं जाओ अवेउब्बियसरीराओ ताओ णं आभरणवसणरहियाओ पगतित्थाओ विभूसाए पण्णत्ताओ,
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