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________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/२ (मूलं+वृत्तिः ) प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], -------------------- मूलं [१४१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४] उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक प्रतिपत्त. विजयद याभिषेकः श्रीजीवाजीवाभि. मलयगिरीयावृत्तिः ॥२४१॥ [१४१] तू०१४१ दीप अनुक्रम [१७९] mammmnama अप्पगतिया देवा उकछोलेनि अप्पेगतिया देवा पच्छोलेंति [अप्पेगतिया देवा उकिदि करेंति] अप्पेगनिया देवा उकिट्टीओ करति अप्पेगतिया देवा उच्छोलेंति पच्छोलिंति उकिहिओ करेंनि अप्पेगतिया देवा सीहणादं करंति अप्पेगतिया देवा पाददहरयं करेंति अप्पेगनिया देवा भूमिचवंडं दलयंनि अप्पेगतिया देवा सीह नादं पादहरयं भूमिचवेडं दलयंति, अप्पेगतिया देवा हकारति अप्पंगतिया देवा युकारंनि अप्पेगनिया देवा थकारैति अप्पे० पुकारति अप्पेगतिया देवा नामाई सावति अप्पेगनिया देवा इकारनि चुकारेंति थक्कारेति पुकारनि णामाई सार्वति अप्पेगतिया देवा उपतंति अवेगनिया देवा णिवयंति अप्पेगनिया देवा परिवयंति अप्पेगतिया दवा पुष्पयंनि णिवयंति परिवयंति अप्पेगतिया देवा जलेति अप्पेगतिया देवा तवंति अप्पेगतिया देवा पनयंति अप्पेगतिया देवा जलंति तबंनि पनवंति अप्पेगहया देवा गजेंति अप्पेगडया देवा विजुयायंति अप्पेगइया देवा वासंति अप्पेगड्या देवा गर्जति विजुयायंति वासंति अप्पेगतिया देवा देव सन्निवायं करेंनि अप्पेगतिया देवा देवुकलियं करति अप्पेगड्या देवा देवकार कई करेंतिअप्पेगतिया देवा दुहह करेंति अप्पगलिया देवा देवमन्निवायं देवउकलियं देवकहकह देवदुहह करति अप्पेगलिया देवा देवुजोयं करति अप्रेगनिया देवा विजयारं करति अप्पंगनिया देवा चेलुकम्वेवं करेंनि अपपेगतिया देवा देवुजोयं विजुनारं चेलुक्खेवं करति अपेगनिया देवा उपप RANCC-%A4%- ANITMIRMImanav-a ॥२४१॥ -imanaveenawana 9 : अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-द्वीप-समुद्राधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- '२' अत्र २ इति निरर्थकम् विजयदेव-अधिकार: ~30
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
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