________________
आगम
(१४)
प्रत
सूत्रांक
[१४१]
दीप
अनुक्रम
[१७९]
[भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र -३ / २ ( मूलं + वृत्ति:)
• उद्देशक: [(द्वीप- समुद्र)],
• मूलं [ १४१]
प्रतिपत्ति: [३], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... आगमसूत्र [१४] उपांगसूत्र-[३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः
जी०स० ४२
बाहक
विजयदेव अधिकार:
विलंवितं विहिं जवदंसेति अप्पेगइया देवा दुतविलंबितं नाम विधिं वर्द्धमेति अप्पेगतिया देवा अंचियं विधिं उवदति अप्पेगतिया देवा रिभितं विधिं उवदंति अ० अंचि तरिभितं णाम दिव्यं विधिं उवदंति अप्पेगनिया देवा आरभई हविधिं उवसेति अप्पेगतिया देवा असो हविधिं उपसंति अप्पेगनिया देवा आरभडभमोलं णाम दिव्वं विधिं उवमेति अप्पेगतिया देवा उपायणिवापत संकुचियपसारियं रियारियं अंतसंसंतं णाम दिव्यं विधिं उवसेंति अप्पेगनिया देवा चउन्विधं वातियं वादेति, तंजातं विततं पणं सिरं, अप्पेगतिया देवा चच्त्रियं गेवं गातंति, तंजहा - उक्तियं पवतयं संदार्य रोहदावसाणं, अप्पेगतिया देवा चव्वियं अभिणयं अभियंति, जहा - दितियं पडंतिय सामन्तोवणिवानिय लोगमज्यावसायिं अपंगतिया देवा पीर्णनि अर्थगतिया देवा कारेंति अप्पेगनिया देवश लंडति अध्ये नानि अप्पेगनिया देवा पीति बुकारेति हति लासंति अप्पेगतिया देवा चुकारेनि अप्पेगतिया देवा अप्फोर्डति अपंगतिया देवा वरमंनि अप्पेगतिया देवा तिति छिंदति अप्पेगलिया देवा अकोति वरति निवतिं चिंति अपंगतिया देवा हसियं करें अप्पेगतिया देवा हरुलाइ करेंनि अप्पेगतिया देवा रहनघणातियं कति अप्पेगतिया देवा हयहेसि करेति त्यिगुलगुलाइयं करेंति रहघणघणाइयं करेति
For P&Pase Cnly
~29~