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________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति: [३], ---------------------- उद्देशक: [(इन्द्रियविषयाधिकार)], --------------------- मूलं [१९१] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१९१] न्धनं च दीप अनुक्रम [३०६] श्रीजीवा- द्रव्यक्षेत्रादिसामग्रीवशतस्तत्तद्रूपास्कन्दनं हि परिणामः, स च तत्रास्तीति न कश्चित्तथाऽभिधाने दोपः ॥ से पूर्ण भंते!' इत्यादि, प्रतिपत्ती जीवाभि अथ 'नून' निश्चितमेतद् भदन्त ! 'शुभशब्दाः ' शुभशब्दरूपाः पुद्गला अशुभशब्दतया परिणमन्ति अशुभशब्दा वा पुद्गला: शुभश-18| देवकृतः मलयगि-दाव्दतया?, भगवानाह-दन्त गौतम! इत्यादि सुप्रतीतं, एतेन सान्वयं परिणाममाह, अन्यथा तद्यो(दयो) गादसत: सत्ताऽनुपपत्तेररीयावृत्तिः शातिप्रसङ्गात् ।। एवं रूपरसगन्धस्पर्शेष्वयात्मीयात्मीयाभिलापेन द्वी द्वाबालापको वक्तग्यो ।। बालग्रदेवे णं भंते! महिहीए जाव महाणुभागे पुब्बामेव पोग्गलं खवित्ता पभू तमेव अणुपरिवहिताणं ॥ ३७४॥ गिणिहत्तए?, हंता पभू, से केणढे णं भंते ! एवं चुचति-देवे णं महिड्डीए जाय गिपिहत्तए?, गो उद्देशः२ यमा! पोग्गले खित्ते समाणे पुब्बामेव सिग्घगती भवित्ता तओ पच्छा मंदगती भवति. देवेणं सू.१९२ महिहीए जाव महाणुभागे पुब्बंपि पच्छावि सीहे सीहगती (तुरिए तुरियगती) चेव से तेणटेणं गोयमा! एवं बुञ्चति जाव एवं अणुपरियट्टित्ताणं गेपिहराए । देवे णं भंते! महिहीए बाहिरए पोगले अपरियाइत्ता पुब्बामेव बाल अच्छित्ता अभेत्ता प गंठित्तए?, मो इणढे समढे १, देवे णं भंते ! महिहिए वाहिरए पुग्गले अपरियाइत्ता पुब्बामेव बालं छित्ता भित्ता पभू गंठित्तए?, नो इणढे समढे २, देवे णं भंते! महिहीए वाहिरए पुग्गले परियाइत्ता पुवामेव बालं अच्छित्ता अभित्ता पभू गंठित्तए ?, मो इणढे समढे ३, देवे णं भंते ! महिड्डीए जाव महाणुभागे बाहिरे पोग्गले परियाइत्ता पुण्यामेव बाल छेत्ता भेत्ता पभू गंठित्तए?, हंता पभू ४,तं चेवणं गठिं छउमत्थे ण जाणति ॥३७४। II.KI अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-देवाधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- २' अत्र २ इति निरर्थकम् तृतीय-प्रतिपत्तौ इन्द्रियविषयाधिकार: परिसमाप्त: अथ देवाधिकारः आरब्ध: ~296~
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
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