SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/२ (मूलं+वृत्तिः ) प्रतिपत्ति: [३], ----------------------- उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], ---------------------- मूलं [१८५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: _ भाग-1 जाली निगम पाव-भार मूल तिः - - - प्रत सूत्रांक [१८५] r -yea जिनवरावभासो द्वीप: आजिनवररावभासः समुद्र इत्यादि । देवचिन्ताबामपि अर्द्धहारे द्वीपऽर्द्धहारभद्रार्द्धहारमहाभद्रा देवी, अर्द्धहारे । समुद्रेऽर्द्धहारवराहारमहावरी, अहारवरे द्वीपेऽद्वहारवरभद्रा हारवरमहाभद्रौ, अद्धहारवरे समुद्रहारवगहारवरनहावरी, अर्बहारावभासे द्वीपेऽजहारदरावभासनद्राहारवरावभासमहाभद्रौ, अर्द्धहारवरावभासे समुद्रेऽद्विारबरावभासवराहारवरावभास-1 महापरी, कनकापलिपीपे कनकाबलिभद्रफनकालिमहामनी, कनफायली समुद्रे कनकायलिवरकनकावलिमहावरी, कनकायलिबरे। द्वीपे कनकालिपरभामा नकाबलिपरमहाभद्री, कनकालिबरे समुद्रे कनकाबलिवर कनकावलिवरमहायरी, कनकावलिवरापभासे द्वीप कनकालिबराबभालभद्र कग कावलिबराबभासमहाभद्रौ, कनकावलिवरावभासे समुद्रे कनकावलिवरावभासबरकनकावलिवरावभासमहाबरी, रमावली द्वीप रमाबलिभदरबावलिमहाभद्री, रमाबली समुरबावलिबररत्नावलिमहावरी, रमावलियरे द्वीपे रसायलिपरभद्ररनावलिकरमहाभद्री, रापलिबरे समुद्र रमावलिवररत्नावलीवर महावरी, रजावलिवरावभासे द्वीपे रमावलिवरावभासभरबाय-1 लिबराबभासमहाभद्री, रनावलिबरावमासे समुद्र रत्नावलिवरावभासवररत्नावलियराबभालमहावरी, मुक्तावली द्वीपे मुक्तावलिभद्रमुक्तावलिमहाभद्रौ, भुक्तावली समुद्र मुक्तावलिबरयुक्तावलिमहावरी, मुक्तावलिबरे द्वीपे मुक्तावलिवरभद्रमुक्तावलिबरमहाभद्री, मुक्ताविलियरे समुद्रे मुकाबलिवर मुक्तावलिमहावरी, मुक्तावलिवरावभासे द्वीपे मुक्तावलिबराबभासभद्रमुक्तावलिवरावभासमहाभद्री, मुक्ता बलिवरावभासे समुत्रे मुकाबलिवरावभासबरमुक्तावलिवरावभासनहापरी, आजिने द्वीपे आजिनभद्राजिनमहाभद्री, आजिने समुद्रे आ| जिनवराजिनवरमहावरी, आजिनवरे द्वीपे आजिनवरभद्राजिनबरमहाभद्री, आजिनवरे समुद्रे आजिनवराजिनवरमहायरी, आजिन१ वरावभासे द्वीपे आजिनवरावभासभद्राजिनवरायभासमहाभद्रौ, आजिनवरावभासे समुद्रे आजिनवरावभासवराजिनवरावभासमहा दीप अनुक्रम [२९६-३००] -* * - Jamai ~285
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy