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आगम
(१४)
[भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/२ (मूलं+वृत्तिः )
प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], ---------------------- मूलं [१८३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४] उपांगसूत्र-[३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१८३]
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दीप अनुक्रम [२९४]
नागवंशाणं उवरिं अन्ने सोलस सोलस नागदतया मुत्ताजाखेतरोसिया हेमजाल जाव महया महया गयदंतसमाणा पन्नत्ता समणाउसो!, | तेमु ण नागदतएसु वह रखवामया सिकगा पन्नत्ता, तेसु णं रययामएसु सिकगेसु बहवे वेरुलियमयाओ भूवघडियामो पण्णताओ, ताओ णं धूवघडियाओ कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुकधूनमघमतगंधुद्धयाभिरामातो सुगंधवरगंधियाओ गंधपट्टिभूयाओ ओरालेणं मगुनेणं घाणमणनिम्बुइकरेणं गंधेणं ते पएसे आपूरेभाणीओ आपूरेमाणीओ चिट्ठति । तेसि णं दाराणं उभओ पासि दुहतो निसी-1 हियाए सोलस सोलस सालभंजियाओ पन्नत्ताओ, ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुयलंकियाओ णाणाविहरागवसणाभो| रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउक्सियपसत्वलक्षणसंवेलियरगसिरयाओ नाणामहपिणद्धाओ मुट्ठिगेमासुमझाओ आमेलजमलजुगलवट्टियअम्भुन्नयपीणरश्यसंठियपओहराओ इसिं असोगवरपायवसमुट्ठियाओ वामहत्यगहियग्गसालाओ ईसिं अद्धच्छिकटक्वचिद्विपहिं स्टूसेमाणीओ विव पक्खु लोयणलेसाओ अण्णमण्णं खिजमाणीओ इव पुढविपरिमाणाओ सासयभावमुवगयाओ चंदाणणातो। चंदविलासिणीतो चंदद्धसमनिटालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उका इव उजोवेमाणीओ विजुषणमरीइसूरदिपंततेयअहिगतरसनिकासाओ सिंगारागारचारवेसाओ पासाईयाओ दरिसणिजाओ अभिरूवाओ पहिरूवाओ। तेसिणं दाराणं उभो पासि दहओ निसीहिआए सोलस २ जालकडगा पण्णचा सञ्चरयणामया अच्छा जाब पतिरूवा, तेसि णं दाराणं उभओ पासि दुहतो निसी| हियाए सोलस सोलस घंटाओ पण्णताओ । तासि णं घंटाणं इमे एयारूचे वण्णावासे पन्नते-जंबूणयामईओ घंटामो बराम-1 | ईओ लालाओ नाणामणिमया घंटापासाशी तवणिजमयाओ संकलाओ रययामया रजूओ । साओ णं घंढाओ ओहस्सराओ मेहस्सराओ हंसस्सराओ कोंचस्सराओ सीहस्सराओ दुंदुभिस्सराओ नंदिसराओ नंदिघोसाओ मंजुस्सराओ मंजुघोसाओ सुस्सराओ सु
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