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________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/२ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], ---------------------- मूलं [१८३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१८३] दीप अनुक्रम [२९४] नागनामा उत्तरद्वारे सुवर्णनामा ॥ 'ते णं दारा' इत्यादि, तानि द्वाराणि षोडश योजनानि प्रत्येकाईमुस्खेनाष्टौ योजनानि विष्कम्भतः, 'तावइयं चेव'त्ति तावदेव-अष्टावेव योजनानीति भावः प्रवेशेन 'सेया बरकणगथूभियागा ईहामिय उसमतुरगणरनगरविहग-1 वालगकिन्नरकरुसरभचमरकुंजरवणळयपउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गयवरवेश्यापरिगयाभिरामा विजाहरजमलजुगलजन्तजुत्ता इव अच्चीसहस्समालिणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिन्भिसमाणा चक्खुलोषणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा, वन्नओ तेसिं दारागं इमो होइ, तंजहा-बहरामया नेमा रिट्ठामया पाट्ठाणा बेरुलियरुइलखंभा जायरूबोबचियपवरपंचयन्नमणिरयणकुट्टिमतला हंसगम्भमया | एलुगा गोमेजमया इंदकीला जोईरसमया उत्तरंगा लोहियक्खमईओ दारचेडाओ (पिंडीओ) पेरुलियामया कबाडा लोहियक्खम-| ईओ सूईओ वइरामया संधी नाणामणिमया समुग्गया वइरामईओ अग्गलाओ अग्गलापासाया रथयामईओ आवत्तणपेढियाओ अंकोत्तरपामा निरंतरघणकवाडा भित्तीसु चेव भित्तिगुलिया छप्पन्ना तिन्नि होति गोमाणसीओवि तत्तिया नाणामणिरयणजालपिंज रमणिवंसगलोहियक्खपहिवंसगरययभोम्मा अंकामया पक्खा पक्रवाहाओ जोईरसमया वंसकवेल्लुगा य रवयामईओ पट्टियाओ जा-11 181 यरूवमईओ ओहाटणीओ बइरामईओ उबरि पुंछणीओ सबसेयरययामए अच्छायणे अंकामयकणगकूडतचणिजधूभियागा सेया | संखदलविमलनिम्मलदहियणगोखीरफेणरययनिगरप्पगासद्धचंदचित्ता नाणामणिमयदामालंकिया अंतो बहिं च सण्हतयणिजरुइलवा-16 लुयापस्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिजा अभिरूवा पडिरूया' एतच यद्यपि विजयद्वारवर्णनायामपि व्यागया 12 तथाऽपि स्थानाशून्यार्थ किश्चियाख्यायते-श्वेतानि अरनबाहुल्याद्वरकनकस्तूपिकानि ईहामृगऋषभतुरगमरमकरविहगव्यालककिनररुरुसरभचमरकुंजरवमलतापग्रलताभक्तिचित्राणि प्रतीतं, तथा स्तम्भोगताभिः-स्तम्भोपरिवर्तिनीभिर्व घरामवीभिर्वेदिकाभिः | ~265
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
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