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________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/२ (मूलं+वृत्तिः ) प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], ---------------------- मूलं [१७९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१७९] तेहिं जोयणसाहस्सितेहिं तावखेत्तेहिं साहस्सियाहिं बाहिरियाहिं वेउब्वियाहिं परिसाहिं महयाहयनहगीतवादिततंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडप्पवादितरवेणं दिव्वाई भोगभोगाईमुंजमाणा महया उक्कडिसीहणायवोलकलकलसहेण विपुलाई भोगभोगाई भुंजमाणा अच्छयपब्वयरायं पदाहिणावत्तमंडलयारं अणुपरियडंति ॥ तेसि भंते! देवाणं इंदे चवति से कहमिदाणिं पकरेंति?, गोयमा! ताहे चत्तारि पंच सामाणिया तं ठाणं उवसंपजित्ताणं विहरंति जाव तत्थ अन्ने इंदे उववण्णे भवति ॥ इंदट्ठाणे णं भंते ! केवतियं कालं विरहिते उववातेणं?, गोयमा! जहपणेणं एकं समयं उक्कोसेणं छम्मासा ।। बहिया णं भंते! मणुस्सखेत्तस्स जे चंदिमसूरियगहणक्वत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्डोववण्णगा कप्पोववरणगा विमाणोचवण्णगा चारोववष्णगा चारद्वितीया गतिरतिया गतिसमावण्णगा?, गोयमा! ते णं देवा णो उहोवव. पणगा नो कप्पोववपणगा विमाणोववन्नगा नो चारोववष्णगा चारद्वितीया नो गतिरतिया नो गतिसमावणगा पकिगसंठाणसंठितेहिं जोयणसतसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहि य बाहिराहिं वेचब्बियाहिं परिसाहिं महताहतणगीयवाइयरवेणं दिवाई भोगभोगाई मुंजमाणा सुहलेस्सा सीयलेस्सा मंदलेस्सा मंदायरलेस्सा चित्तंतरलेसागा कूडा इव ठाणहिता अण्णोपणसमोगाढाहिं लेसाहिं ते पदेसे सब्बतो समंता ओभासेंति उज्जोवेंति तवंति पभासेंति ॥ दीप अनुक्रम [२८८] ROCOCADKANGACARROCAKACANC1500 ~239~
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
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