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आगम
(१४)
प्रत
सूत्रांक
[१७७]
+
गाथा:
॥१-३२||
दीप
अनुक्रम
[२५०
-२८६]
[भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र - ३ / २ ( मूलं + वृत्तिः) ------ उद्देशक: [ ( द्वीप - समुद्र )],
प्रतिपत्ति: [ ३ ],
- मूलं [१७७] + गाथा:
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... आगमसूत्र [१४] उपांगसूत्र- [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः
मस्साणं ॥ १३ ॥ तेसिं पविसंताणं तायकखेत्तं तु वहुए नियमा । तेणेव कमेण पुणो परिहायज्ञ निक्ताणं ॥ १४ ॥ सिं कलंबुयापुष्कसंठिया होइ तावतपहा । अंतो य संकुया बाहि वि स्थडा चंद्रसूरगणा ॥ १५ ॥ केणं बहुति चंदो परिहाणी केण होइ चंदस्स । कालो वा जोन्हो वाकेऽणुभावेण चंदस्स ।। १६ ।। किन्हं राहूविमाणं निचं चंद्रेण होइ अविरहियं । चउरंगुलari हिट्ठा चंदरस तं चरइ ॥ १७ ॥ बावहिं यावद्धिं दिवसे दिवसे उ सुकपक्वस्स । जं परिवह दो खदेड़ तं चैव कालेणं ॥ १८ ॥ पन्नरसहभागेण य चंद्रं पश्नरसमेव वरइ | पन्नरसइभागेण य पुणोषि तं चैव तिकमइ ॥ १९ ॥ एवं वह चंदो परिहाणी एव होइ चंदस्स । कालो वा जोन्हा वा तेणणुभावेण चंदस्स ॥ २० ॥ अंतो मणुस्सखेत्ते हवंति चारोवगा य उबवण्णा । पञ्चविहा जोइसिया चंदा सूरा गहगणा य ॥ २१ ॥ तेण परं जे सेसा चंदाइचगहतारनक्वता । after of afe are raट्टिया ते मुणेयच्या ॥ २२ ॥ दो चंदा इह दीवे चत्तारि य सागरे लवणतोए । घाइडे दीवे वारस चंद्राय सूराय || २३ || दो दो जंबूद्दीवे ससिसूरा दुगुणिया भवे लक्षणे लावणिगा य निगुणिया ससिसूरा घायईसंडे ॥ २४ ॥ धायइसंडपनि उद्दिद्वतिगुणिया भवे चंद्रा | आइलचंदसहिया अनंतराणंतरे खेते ॥ २५ ॥ रिक्खग्गहतारग्गं दीवसमुद्दे जहिच्छ से नाउं । तस्स ससीहिं गुणियं रिक्वग्गहतारगाणं तु ॥ २६ ॥ चंदातो सूरस्स य सूरा
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