SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१४) प्रत सूत्रांक [१७७] + गाथा: ॥१-३२॥ दीप अनुक्रम [२५० -२८६] [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र - ३ / २ ( मूलं + वृत्तिः) ------ उद्देशक: [ ( द्वीप - समुद्र )], प्रतिपत्तिः [३], - मूलं [ १७७] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... आगमसूत्र [१४] उपांगसूत्र-[३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः श्रीजीवा जीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः ॥ ३३४ ॥ मलोगंमि । सत्त य सता अणूणा तारागणकोटकोटीणं ॥ ३ ॥ सोमं सोनेंसु वा ३ ॥ एसो तारापिंडो सवसमासेण मणुयलोगंमि । बहिया पुण ताराओ जिणेहिं भणिया असंखेजा ॥ १ ॥ एवइयं तारगं जं भणियं माणुसंमि लोगंमि । चारं कलंबुयापुष्पसंठियं जोइस चरइ ||२|| रविससिगहनता एवइया आहिया मणुयलोए । जेसिं नामागोयं न पागया पन्नवेहिंति ॥ ३ ॥ छाडी पिडगाई चंदाइचा मणुपलोगंमि । दो चंदा दो सूरा य होति एकेक पिडe ॥ ४ ॥ छावट्टीपिडगाई नक्त्ताणं तु मणुयलोगंमि । छप्पनं नक्खता य होति एकेक पिडए ॥ ५ ॥ छावडी पिडगाई महागहाणं तु मणुयलोगंमि । छावतरं गहस्यं च होइ एकेकए पिडए ॥ ६ ॥ चत्तारि य पंतीओ चंदाइचाण मणुयलोगंमि । छावद्विय छावद्विय होइ य एकेकया पंती ॥ ७ ॥ छप्पनं पंतीओ नक्खत्ताणं तु मणुयलोगंमि । छावट्टी छावट्टी हवइ य एक्केकया पंती ॥ ८ ॥ छावसरं गाणं पंतिसयं होइ मणुयलोगंमि । छावट्ठी छावट्ठी य होति एके किया पंती ॥ ९ ॥ ते मेरु परियडन्ता पयाहिणावत्तमंडला सध्वे । अणवद्वियजोगेहिं चंदा सूरा गहगणा य ॥ १० ॥ नक्खन्तारगाणं अवट्टिया मंडला मुणेयब्वा । तेऽविय पयाहिणावत्तमेव मेरुं अणुचरंति ॥ ११ ॥ रणियरदिणयराणं उहे व अहे व संकमो नत्थि । मंडलसंकमणं पुण अभितरवाहिरं तिरिए ॥ १२ ॥ स्यणियरणियराणं नक्खत्ताणं महग्गहाणं च । चारविसेसेण भवे सुहदुक्खविही For P&False Cinly ३ प्रतिपत्तौ समयक्षेत्राधि० उद्देशः २ सू० १७७ ~216~ ॥ ३३४ ॥ अत्र मूल संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते - द्वीप समुद्राधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश: '२' अत्र २ इति निरर्थकम्
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy