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आगम
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[भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/२ (मूलं+वृत्तिः ) प्रतिपत्ति : [३], ---------------------- उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], -------------------- मूलं [१७६] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः
[१७६]
प्रतिपत्ती & पुष्करवका राधिक उद्देशः२ सू०१७६
गाथा:
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केवतियं चकवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पणत्ते?, गोयमा! सोलस जोयणसतसहस्साई चकवालविक्खंभेणं-एगा जोयणकोडी बाणउति खलु भवे सयसहस्सा । अउणाणउर्ति अट्ठ सया चउणउया य [परिरओ] पुक्खरवरस्स ॥२॥ से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेण य यणसंडेण संपरि० दोण्हवि वपणओ ॥ पुक्खरवरस्स णं भंते! कति दारा पण्णता?, गोयमा! चत्तारि वारा पपपत्ता, तंजहा-विजए बेजयंते जयंते अपराजिते ॥ कहिणं भंते ! पुक्खरवरस्स दीवस्स विजए णामं दारे पपणते?, गोयमा! पुक्खरवरदीवपुरच्छिमपेरंते पुक्खरोदसमुहपुरच्छिमदस्स परस्थिमेणं एत्थ णं पुक्खरवरदीवस्स विजए णामं दारे पपणते तं चेव सव्वं, एवं चसारिवि दारा, सीयासीओदा णस्थि भाणितवाओ ॥ पुक्खरवरस्स णं भंते! दीवस्स दारस्सय २ एस ण केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णते?, गोयमा!-'अड्याल सयसहस्सा यावीसं खल्लु भवे सहस्साई । अगुणुत्तरा य चउरो दारंतर पुण्यरवरस्स ॥१॥ पदेसा दोण्हवि पुढा, जीवा दोसु भाणियब्वा ॥ से केणटेणं भंते ! एवं बुचति पुक्वरघरदीवे २१, गो० पुक्खरबरे णं दीवे तत्थ २ देसे तहिं २ बहवे पउमरुक्खा पउमवणसंडा णिचं कुसुमिता जाब चिट्ठति, पउममहापउमरुक्वे एस्थ णं पउमपुंडरीया णाम दुवे देवा महिहिया जाव पलिओवमट्टितीया परिबसंति, से तेण?णं गोयमा! एवं बुचति पुक्वरवरडीचे २ जाब निचे ॥ पुक्खरवरेणं
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दीप अनुक्रम [२३५-२४९]
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अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-द्वीप-समुद्राधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- '२' अत्र २ इति निरर्थकम्
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