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________________ आगम (१४) [भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [१], ------------------------- उद्देशक: [-], ---------------------- मूलं [३४-३५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: %EX % % प्रत सूत्रांक [३४-३५] % दीप ते समासतो दुविहा पपणत्ता, तंजहा-पजत्ता य अपजत्ता य । तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता?, गोयमा ! तओ सरीरया पपणत्ता, तंजहा-ओरालिए तेयए कम्मए, सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं छेवट्ठसंघयणी हुंडसंठिता, चत्तारि कसाया, सपणाओवि ४, लेसाओ ५, इंदिया पंच, समुग्घाता तिणि णो सण्णी असण्णी, णपुंसकवेदा, पजत्तीओ अपज्जत्तीओ य पंच, दो दिडिओ, दो दसणा, दो नाणा दो अन्नाणा, दुविधे जोगे, दुविधे उवओगे, आहारो छदिसिं, उववातो तिरियमणुस्सेहिंतो नो देवेहितो नो नेरइएहितो, तिरिएहितो असंखेजवासाउवोसु, अकम्मभूमगअंतरदीवगअसंखेजवासाउअवजेसु मणुस्सेसु, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुवकोडी, मारणतियसमुग्धातेणं दुबिहावि मरंति, अणंतरं उत्र्यद्वित्ता कहिं ?, नेरइएसुवि तिरिक्खजोणिएसुवि मणुस्सेसुवि देवेसुवि, नेरइएसु रयणप्पहाए, सेसेसु पडिसेधो, तिरिएसु सब्बेसु उवयजंति संखेज्जवासाउएसुवि असंखेजवासाउएसुवि चप्पएसु पक्खीसुवि मणुस्सेसु सब्बेसु कम्मभूमीसु नो अकम्मभूमीएसु अंतरदीवएसुविसंखिज्जयासाउएसवि असंखिजवासाउएमुवि देवेसु जीव वाणमंतरा, चउगइया दुआगतिया, परित्ता असंखेजा पण्णत्ता । से तं जलयरसमुच्छिमपंचेदियतिरिक्खा ।। (सू० ३५) अथ के ते संमूरिछमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका: १, सूरिराह-संमूछिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानिविधाः प्रज्ञप्ताः, तयथा-जलचराः % अनुक्रम [४२-४३] PLACEXCXMAR ~81~
SR No.035016
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 16 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages480
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size116 MB
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