SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१४) [भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [१], ------------------------- उद्देशक: [-1, ---------------------- मूलं [२९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४] उपांगसूत्र- [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक से किं तं तेइंदिया ?, २ अणेगविधा पण्णत्ता, तंजहा-ओवइया रोहिणीया हस्थिसोंडा, जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासतो दुबिहा पण्णता, तंजहा-पज्जत्ता य अपजत्ता य, तहेव जहा बेइंदियाणं, नवरं सरीरोगाहणा उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई, तिन्नि इंदिया, ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं एगूणपण्णराइंदिया, सेसं तहेव, दुगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता, से तं तेइंदिया ॥ (सू० २९) अथ के ते त्रीन्द्रिया:?, सूरिराह-त्रीन्द्रिया अनेकविधाः प्राप्ताः, तद्यथा-'भेदो जहा पण्णवणाएं' भेदो यथा प्रज्ञापनायां तथा वक्तव्यः, स चैवम्-"उवयिया रोहिणिया कुंथूपिवीलिया उद्देसगा उद्देहिया उकलिया तणहारा कद्वहारा पत्तहारा मालुया पत्तहारा तणबेंटका टू पत्तवेंटया फलवेंटया तेम्बुरुमिंजिया तउसमिजिया कप्पासद्विमिंजिया झिलिया झिंगिरा झिगिरिडा बाहुया, [पन्थानम् १०००] मुरगा सोवस्थिया सुयवेंटा इंदकाइया इंदगोवया कोत्थलबाहगा हालाहला पिसुया तसवाइया गोन्ही हथिसोंडा ॥” इति, एते च केचिदतिप्रतीताः केचिद्देशविशेषतोऽवगन्तव्याः, नवरं 'गोम्ही कण्हसियाली, 'जे यावण्णे तहप्पगारा' इति येऽपि चान्ये 'तथाप्रकाराः' एवंप्रकारास्ते सर्वे श्रीन्द्रिया ज्ञातव्याः, 'ते समासतो' इत्यादि समस्तमपि सूत्र द्वीन्द्रियवत्परिभावनीयं, नबरमवगाहनाद्वारे उत्कर्षतोऽवगाहना त्रीणि गव्यूतानि । इन्द्रियद्वारे त्रीणि इन्द्रियाणि । थितिर्जघन्येनान्तर्मुहूर्वमुत्कर्षत एकोनपश्चाशद् रात्रिन्दिवानि, शेषं तथैव, उपसंहारमाह-सेत्तं तेईदिया ।।' उक्तास्त्रीन्द्रियाः, सम्प्रति चतुरिन्द्रियप्रतिपादनार्थमाह से किं तं चउरिदिया ?, २ अणेगविधा पपणत्ता, तंजहा-अंधिया पुत्तिया जाव गोमयकीडा, जे अनुक्रम [३७] त्रि एवं चतुर-इन्द्रियजीवानाम् भेदा: प्ररुप्यते ~73~
SR No.035016
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 16 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages480
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size116 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy