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________________ आगम (१४) [भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [३], -----------------------उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], -------------------- मूलं [१३८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: %254 - प्रत सूत्रांक [१३८] मदुगुलपट्टपडिच्छायणे सुविरचितरयत्ताणे रत्तंसुवर्सवुते सुरम्मे आईशग समयूरणवणीचनूलफासमउए पासाईए॥ तस्स गं देवसयणिजस्स उत्तरपुरस्थिमे गं एस्थ णं महई एगा मणिपीठिका पण्णता जोयणमेगं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं पाहलेणं सबभगिमई जाव अच्छा ।। नीसे णं मणिपीढियाए उवि एणं महं खुए महिंदज्झए पपणते अट्ठमाई जोयणाई उहूं उच्चत्तेणं अद्धकोसं उब्बेघेणं अद्धकोसं विश्व मेणं वेरुलियामयवद्दलढसंठिते तहेव जाव मंगला प्रया छसानिछत्ता।। तस्स णं खुहमहिंदज्झयस्स पचत्यिमेणं गत्थ णं विजयस्स देवस्स चुप्पालए नाम पहरणकोसे पण्णत्ते । तत्थ णं विजयस्स देवस्स फलिहरयणपामोक्खा बहवे पहरणरयणा संनिक्खित्ता चिट्ठति, उजलसुणिसियसुनिक्खधारा पासाईया || तीसे णं सभाए सुहम्माए उप्पि वहवे अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ।। (सू०१३८) 'तस्स णं बहुसमरमणीयस्स भूमिभागस्से'त्यादि, तस्य बहुसमरमणीयस्थ भूमिभागस्य वहुमध्यदेशभागे, अत्र महती एका| मणिपीठिका प्रज्ञता, द्वे योजने आयामविष्कम्भाभ्यामेकं योजनं बाहल्लेन सामना मणिमयी 'अच्छा' इत्यादि प्राग्बन् । 'तीसे द्रोणमित्यादि, तस्वा मणिपीठिकाया उपरि महानेको माणवकनामा चैत्यस्तम्भः प्रज्ञप्तः, अष्टिमानि-साद्धीनि सप्त योजनान्यूज भुस्खेन अ कोश-धनु:सहस्रमानमुद्वेधेन, अर्द्धकोश विष्कम्भेन पडनिक:-पटकोटीकः पडिहिक: 'बदरामयवट्टलट्ठसंठिए' इत्यादि महेन्द्रध्वज-1 वद् वर्णनमशेषगस्यापि तावद्वक्तव्यं यावद् पहयो सहस्सपत्तहत्यगा सम्बरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा' इति ॥ 'तस्स ण'मि 4% 82-%E4 दीप अनुक्रम [१७६] - - --- 6-4-%ाव % ~471~
SR No.035016
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 16 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages480
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size116 MB
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