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________________ आगम (१४) प्रत सूत्रांक [११९] दीप अनुक्रम [१५७] [भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र -३ / १ ( मूलं + वृत्ति:) - उद्देशक: [ ( देव०)], - मूलं [११९] प्रतिपत्ति: [३], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [१४] उपांगसूत्र- [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः जाव बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ?, गोयमा बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स २ अभितरियाए परिसाए वीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए चउवीसं देव सहस्सा पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, अभितरियाए परिसाए अद्धपंचमा देविसता, मज्झमियाए परिसाए चत्तारि देविसया पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अड्डट्ठा देविसता पण्णत्ता, बलिस ठितीए पुच्छा जाव बाहिरियाए परिसाए देवीणं केवतियं काल ठिती पण्णत्ता ?, गोयमा ! बलिस्स णं वइरोयदिस्स २ अभितरियाए परिसाए देवाणं असुट्टपलिओमा ढिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए तिन्नि पलिओयमाई ठिती पण्णत्ता, बाहिरिया परिसाए देवाणं अहाइलाई पलिओ माई ठिई पन्नता, अभिंतरियाए परिसाए देवीणं अहारजाई पलिओ माई ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं दो पलिओ माई ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवीणं दिवद्धं पलिओवमं किती पण्णत्ता, सेसं जहा चमरस्स असुरिंदर असुरकुमाररण्णो ॥ (सू० ११९) 'कहि णं भंते! उत्तरिलाणं असुरकुमाराणं देवाणं भवणा पण्णत्ता' इत्यादि क भदन्त ! उत्तराणामसुरकुमाराणां भवनानि प्रज्ञतानि ? इत्येवं यथा प्रज्ञापनायां द्वितीये स्थानाख्ये पदे तथा तावद्व कन्यं यावद्बलिः, अत्र वैरोचनेन्द्रो वैरोचनराजः परिवसति, तत ऊर्द्धमपि तावद्वतव्यं यावद्विहति, तचैवम् — “कहि णं भंते! उत्तरिहा असुरकुमारा देवा परिवसंति ?, गोवमा ! जंबु For P&Praise Chly ~343~
SR No.035016
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 16 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages480
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size116 MB
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