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आगम
(१४)
[भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/१ (मूलं+वृत्ति:)
प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(मनुष्य)], -------------------- मूलं [१११] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४] उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१११]
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दीप
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वासाति वा रयणवासाति वा बदरवासाति वा आभरणवासाति वा पत्तवासाति वा पुष्फवासाति वा फलवासाति वा बीयवासा मल्लवासा. गंधवासा० वणवासा० चुण्णवासा खीरवुट्ठीति वा रयणबुट्ठीति वा हिरण्णवुट्ठीति वा सुवण्ण तहेब जाव चुण्णवुट्ठीति वा सुकालाति वा दुकालाति वा सुभिक्खाति वा भिक्खाति वा अप्परघाति वा महग्घाति वा कयाइ वा महाविकयाइ वा सपिणहीइ वा सचयाइ वा निधीइ वा निहाणाति वा चिरपोराणाति या पहीणसामियाति वा पहीणसेउयाइ वा पहीणगोत्तागाराई वा जाई इमाई गामागरणगरखेडकन्धडमडंबदोणमुहपट्टणासमंसंवाहसन्निवेसेस सिंघाडगतिगचउक्कचच्चरचउमुहमहापहपहेसु णगरणिमणसुसाणगिरिकंदरसन्तिसेलोवहाणभवणगिहेसु सन्निक्खित्ताई चिट्ठति, नो तिण? समटे । एगुरुयदीवे ण भंते! दीवे मणुयाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता?, गोयमा! जहन्नेणं पलिओबमस्स असं. खेजइभागं असंखेजतिभागेण ऊणगं उक्कोसेण पलिओवमस्स असंखेजतिभागं । ते भंते ! मणुया कालमासे कालं किचा कहिं गच्छति कहिं उववजंति ?, गोषमा! ते णं मणुया छम्मासाबसेसाउया मिहणनाई पमति अउणासीई राइंदियाई मिहणाई सारकम्वति संगोविंति य, सारवियत्ता २ उस्ससित्ता निस्ससित्ता कासित्ता छीतित्ता अकिहा अन्वहिता अपरियाविया [पलिओवमस्स असंग्विजइभागं परियाविय] सुहंसुहेणं कालभासे कालं किया अन्नयरेसु देवलोएसु
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अनुक्रम [१४५]
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