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आगम (१४)
[भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/१ (मूलं+वृत्ति:)
प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(तिर्यञ्च)-१], -------------------- मूलं [९९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [२] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
श्रीजीवाजीवाभि मलयगिरीयावृत्तिः
प्रत
३ प्रतिपत्ती तिर्यग्योन्यधिक उद्देशः१
सूत्रांक [९९]
सु०९९
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स्थियवनाई सोस्थियलेसाई सोस्थियज्झयाई सोस्थिसिंगाराई सोस्थिकूडाई सोस्थिसिहाई सोस्धुत्तरवर्डिसगाई?, हंता अस्थि । ते णं भंते! विमाणा केमहालना प०? गोयमा! जावतिए णं सरिए उदेति जावइएणं च मरिए अस्थमति एवतिया तिपणोवासंतराई अत्धेगलियस्स देवस्स एगे विक्रमे सिता, सेणं देवे ताए उकिट्ठाए तुरियाए जाव दिव्याए देवगतीए वीतीवयमाणे २ जाव एकाई वा दुयाई वा उक्कोसेणं छम्मासा वितीधराजा, अन्धेगतिया विमाणं वितीवाजा अत्यंगतिया विमाणं नो वीतीवरजा, एमहालता णं गोयमा! ते विमाणा पण्णता, अस्थि णं भंते ! विमाणाई अंचीणि अचिरावत्ताई तहेब जाव अचुत्तरवळिसगाति?, हंता अस्थि, ते विमाणा केमहालना पणत्ता?, गोयमा! एवं जहा सोत्थी(याई)णि णवरं एवतिघाई पंच उवासंतराई अत्धेगतियस्स देवस्स एगे विक्कमे सिता सेसं तं रेव ।। अस्थि णं भंते ! विमाणाई कामाई कामावत्ताई जाव कामुत्तरवडिंसपाई ?, हंता अस्थि, ते णं भंते! विमाणा केमहालया पण्णसा?, गोयमा! जहा सोथीणि वरं सत्त उवासंतराई विक्कमे सेसं तहेव ।। अस्थि णं भंते! विमाणाई विजयाई वेजयंताई जयंताई अपराजिताई?, हंता अस्थि नेणं भंते ! विपाणा के०?, गोयमा! ज़ाय
दीप
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अनुक्रम [१३३]
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SPROCES-RRC -436-
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१३७॥
१ मीस्थियाई इसाद टीकादभिप्रायेण पाठोऽत्र.
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