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आगम (१४)
[भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/१ (मूलं+वृत्ति:)
प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(तिर्यञ्च)-१], -------------------- मूलं [९६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[१६]
से कि तं चत्रुष्पदधलयरपंचिंदिय०? चउप्पय० दुविहा पण्णत्ता, नंजहा-समुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदिय० गन्भवकंनियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्व जोणिता य, जहेब जलयराणं नहेब चउकतो भेदो, सेत्तं चउप्पदयलयरपंचेंद्रियः । से किं तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्व० ?, २दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-उरगपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्वजोणिता भुयगपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिता । से किं तं उरगपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिता?, उरगपरिक विहा पण्णत्ता. तंजहा-जहेब जलयराणं तहेव चकतो भेदो, एवं भुयगपरिसप्पाणवि भाणितब्चं, सेनं भुयगपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्वजोणिता, से तं थल यरपंचेदियतिरिक्ख जोणिता से किं तं खहयरपंचेदियतिरिक्वजोणिया?, वह०२ दुबिहा पण्णता, तंजहा-समुच्छिमखहयरपंचेंद्रियतिरिकग्वजोणिता गन्भवतियवहयरपंचेंदियतिरिकग्वजोणिता य । से किं तं संमुच्छिमग्वहयरपंचेदियतिरिक्वजोणिता?, संमु० २ दुविहा पण्णत्ता, जहा-पज्जत्तगसंमुच्छिमखहयरपंचेंद्रियतिरिक्वजोणिया अपज्जत्तगसमुच्छिमवहायरपंचेदियनिरिक्खजोणिया य, एवं गम्भवतियाथि जाव पजतगगम्भवतियावि जाव अपजत्तगगभवतियावि वहयरपंचेंवियतिरिक्खजोणियाणं भंते! कतिविधे जोणिसंगहे पण्णते?, गोयमा तिविहे जोणिसंगहे
दीप
अनुक्रम [१३०]
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