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आगम (१४)
[भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [३], -----------------------उद्देशक: [(नैरयिक)-२], -------------------- मूलं [९२-९४] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [२] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
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[९२-९४]
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श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्ति
प्रतिपत्तो नरकाधि. | उद्देशः २
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| सू० ९२
गाथा:
॥१२७॥
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दीप अनुक्रम
सव्वतेसु (सू०९२) इमीसे ण भंते ! रयणप्प० पु० तीसाए नरयावाससयसहस्संसु इकमिकसि निरयावासंसि सब्वे पाणा सवे भूया सत्वे जीवा सब्वे सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाय वणस्सइकाइयत्ताए नेरइयत्ताए उवचन्नपुब्वा?, हंता गोयमा! असतिं अदुवा अर्णतखुत्तो, एवं जाव अहेस. समाए पुढवीए णवरं जत्थ जसिया परका। [इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पु० निरयपरिसामंतेसु जे पुढविकाइया जाच वणप्फतिकाइया ते णं भंते ! जीवा महाकम्मतरा चेव महाकिरियतरा चेव महाआसपसरा चेव महावेषणतरा चेव ?, हंता गोयमा! इमीसे णं भिंते !] रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतसुतं चेष जाच महाबेदणतरका चेव, एवं जाय अधेसत्तमा] (सू०१३)। पुढवीं
ओगाहित्ता, नरगा संठाणमेव वाहल्लं । विक्वंभपरिक्वेवे वपणो गंधो य फासो य ॥१॥ तेसिं महालयाए उबमा देवेण होइ कायब्वा । जीवा य पोग्गला वकर्मति तह सासया निरया ॥२॥ उववायपरीमाणं अवहारञ्चत्तमेव संघयणं । संठागवण्णगंधा फासा ऊसासमाहारे ॥३॥ लेसा दिही नाणे जोगुवओगे तहा समुग्घाया। तत्तो खुहापिवासा विउवणा वेयणा य भए ॥ ४ ॥ उववाओ पुरिसाणं ओवम्मं वेयणाएँ दुविहाए । उव्वणपुढवी उ, उववाओ सव्वजीवाणं ॥५॥
एयाओ संगहणिगाहाओ॥ (सू० ९४) ।। बीओ उद्देसओ समत्तो॥ 'रयणप्पभे त्यादि, रत्नप्रभापूथिवीनरयिका भदन्त ! कीदृशं पृथिवीस्पर्श प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति, भगवानाह-गौतम ! 'अणिह
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॥१२७॥
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