SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१४) [भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(नैरयिक)-२], -------------------- मूलं [८९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [८९] ENG-RECRolefiedeoCRECRECR-AC आसगंसि पक्विवेजा णो चेवणं से रयणप्प० पु० णेरतिए तित्ते वा सिता बितण्हे वा सिता, एरिसया णं गोयमा! रयणप्पभाए रतिया खुधप्पिवासं पचणुम्भवमाणा विहरति. एवं जाव अधेसत्तमाए । इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पु० नेरतिया कि एकत्तं पभू विउवित्तए पुहुर्तपि पभू विउवित्तए?, गोयमा! एगत्तंपि पभू पुहुतंपि पनू विउवित्तए, एगत्तं विउब्वेमाणा पुगं महं मोगररूवं घा एवं मुसुंदिकरवत्तअसिसत्तीहलगतामुसलचकणारायकुंततोमरसूललउडभिंडमाला य जाच भिंडमालरूवं वा पुहत्तं विउश्वेमाणा मोग्गररूवाणि वा जाव भिंडमालरूबाणि वा ताई संखेजाई णो असंखेज्ञाई संबद्धाई नो असंबद्धाई सरिसाइं नो असरिसाइं विजव्वंति, विउव्यित्ता अपणमण्णस्स कार्य अभिहणमाणा अभिणमाणा वेषणं उदीरेंति उजलं विउल पगाद ककसं कडयं फरुसं निरं चंडं तिव्वं दुक्खं दुग्गं दुरहियासं, एवं जाव धूमप्पभाए पुढवीए । छट्टसत्तमासु णं पुढवीसु नेरइया यह महंताई लोहियकुंथूरूवाई वहरामहतुंडाई गोमयकीडसमाणाई विउच्वंति, विउब्वित्ता अन्नमन्नस्स कार्य समतुरंगमाणा खायमाणा स्वायमाणा सयपोरागकिमिया विव चालेमाणा २ अंतो अंतो अणुप्पविसमाणा २ वेदणं उदी. रंति उज्जलं जाव दुरहियामं ॥इमीसे णं भंते। रयणप० पु० नेरच्या किं सीतवेदणं बेइंति उसिणदणं वेइंति सीउसिणवेदणं बवेति ?, गोथमा! णो सीयं बेदणं वेदेति उसिणं वेदणं दीप अनुक्रम [१०५] - - ~243~
SR No.035016
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 16 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages480
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size116 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy