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________________ आगम (१४) [भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(नैरयिक)-२], -------------------- मूलं [८७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [८७]] पु० नेरतियाण सरीरा किंसंठिता पण्णत्ता,गोयमा विहा पण्णत्तातंजहा-भवधारगिजा य उ. तरवेउब्विया य, नत्थणं जेले भवधारणिज्जा ले इंडसंठिया पण्णत्ता,नत्थ णं जे ते उत्तरवेउविधा तेवि हुंटसंठिला पण्णता, एवं जाव अहे मत्तमा इमीसे णं भंते ! रयणपणेरतियाणं मरीरगा। करिसता यण्णणं पण्पत्ता?, गोयमा काला कालोभामा जाव परमकिण्हा वाण पत्ता, एवं जाव अहेससमाए । इमी से णं भंते ग्यण पु० नेरड्याणं सरीरया फेरिमया गंधणं पण्णत्ता?, गोयमा! से जहानामए अहिम इ वा तं चेव जाव आहेसत्तमा ॥ हमीने स्थण पुनेरयाणं सरीरया करिमया काणं पण्णता?, गोयसा! फरिनच्छचिचिच्छविया खरफझमझाम - सिरा फामेणं पण्णता, गवंशाच धनसमा (५०८७) 'रयणप्पयादि. रसप्रभाधिवीनरथिका भदन्त सिंहन निनः न संहनन संहननवन्त: प्रक्षना: , भगवानाह-गौतम 'छहं संघयणाण' मिलयादि प्राग्वन , यत्र प्रतिनिधि नाबढकव्यं यावद्धःसभनी । सम्पत्ति संस्थानप्रतिपादनार्थमाह-रयणप-18 मत्यादि, रमनभावृथिवीनैरयिकाणां भगवरोरमाणिनिसंस्थिताजि कन संस्थान संस्थानवन्ति प्रक्षयानि, भगवानाह-गौ-14 तम' रबप्रभाथिषीनरयिकाणां शरीराणि द्विविधानि प्रसपानि, तपथा-भवधारणीयानि उत्तरवैक्रियाणि च, तब यानि भवधारणी-1 यानि सानि तथाभवस्वाभायादवयं हुण्डनामकमादयतो हुण्डसंधानानि, यान्यपि चीत्तरक्रियरूपाणि तान्यपि यद्यपि शुभमहं वैसक्रिय करित्यागीति चिन्तयति धाइपि सभाभवाभाव्यतो हुसंस्थाननामक मंदियन उत्साहितस कलरोगपिच्छ कपोतपक्षिण इव हु-11251 दीप अनुक्रम [१०३] 1949 ~237~
SR No.035016
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 16 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages480
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size116 MB
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