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________________ आगम (१४) [भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [२], -------------------------उद्देशक: [-1, ---------------------- मूलं [५८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१५], उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति प्रत सूत्रांक श्रीजीवा- सका, से तं नेरइयनपुंसका ॥ से किं तं निरिक्वजोगियणपुंसका?,२ पंचविधा पणत्ता, जहाजीवाभि एगिदियतिरिक्वजोणियनपुंसका, बेइंदि० ते इंदि० चउ० पंचेदियतिरिक्खजोणियणपुंसका ॥ से मलयागि- किं तं एगिदियतिरिक्वजोणियनपुंसका?, २ पञ्चविधा पण्णत्ता, तं० पु० आ० ते वा० ब० से तं रीयावृत्तिः एगिवियतिरिक्वजोणियणपुंसका ॥ से किं तं बेइंदियतिरिक्व जोणियणपुंसका?, २ अणेगविधा पपणत्ता, से तं बेइंदियतिरिक्वजोणिया, एवं तेइंदियावि, चरिंदियावि ॥ से किं तं पंचेंदिय॥ ७४॥ तिरिक्वजोणियणपुंसका?, २तिविधा पण्णत्ता, तंजहा-जलयरा थलयरा खहयरा । से किं तं जलयरा १, २ सो चेव पुब्बुत्तभेदो आसालियवजितो भाणियब्वो, से तं पंचेंदियतिरिक्वजोणियणपुंसका। सो किं तं मणुस्सनपुंसका?, २ तिविधा पण्णता, तंजहा-कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवका, भेदो जाव भा०॥ (मू०५८) 'से किं तं नपुंसगा' इत्यादि, अथ के ते नपुंसकाः, नपुंसकामिविधाः प्रज्ञाः , तद्यथा-नैरथिकनपुंसकातिर्यग्योनिकन-1 उसका मनुष्यनपुंस काश्च ।। नैरविकनपुंसकप्रतिपादनार्थमाहु-से कि तमित्यादि, अथ के ते नैरयिकनपुंसका: ?, पृथ्वीभेदेन सनविधा: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-रत्नप्रभागृथ्वीनरयिकनपुंसकाः शर्कराप्रभापृथ्वीनैरयिकनपुंसका: यावधःसप्तमपृथिवीनैरयिकनपुंसकाः, उपसंहारमाह-से तं नेरइयनपुंसका' । सम्प्रति तिर्यग्यो निकनपुंसकप्रतिपादनार्थमाह-'से किं तमित्यादि प्रभसूत्रं सुगमम् | भगवानाह-तिर्यन्योनिकनपुंसकाः पञ्चविधाः प्रज्ञप्राः, तद्यथा-एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसका यावत्पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः ।। प्रतिपत्ती पुरुषवेद | स्थिति नकारी सू ५७ नपुंसक भेदाः [५८] दीप अनुक्रम ACT [६६] ~158~
SR No.035016
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 16 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages480
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size116 MB
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