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आगम
(१३)
[भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः )
----------- मूलं [७५-८०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [७५-८०]
भुजो २ सम्म विणएणं खामित्तएत्तिक जामेव दिसि पाउन भूते तामेव दिसि पडिगर ॥ तए णं से पएसीराया कलं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलते हनु: जाव हियए जहेव कृणिए तहेव निग्गच्छद अंतेउरपरियाल सहि संपरिखुढे पंचविहेणं अभिगमेणं वंदह नमसह एयम भुज्जी२ सम्म विणएणं खामेह (सू०७७)तरण केसी कुमारसमणे पएसिस्स रपणो सूरियकंतप्पमुहाणं देवीणं तीसे य महतिमहालियाए महवपरिसाए जाव धम्म परिकहेइ । तए णं से पएसीराया धम्म सोचा निसम्म उद्वाए उति र केसि कुमारसमणं वंदह नर्मसइ २त्ता जेणेव सेयवियाँ नगरी ते गेव पहारेत्य गमगाए। तरण केसी कुमारसमणे परसिरायं एवं वदासी-मा गं तुम पएसी! पुर्वि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणि जे भविलासि, जहा से वणसंडे इ वा णसाला इ वा इक्खुवाइए इवा खलवाडए इवा, कहणं भंते!, वग संडे पत्तिए पुफिए फलिए हरियगरेरिजमाणे सिरीए अतीव उपसोभेमाणे २ चिट्ठइ तथा गं वगरे रम. णिज्जे भवति,जया ण वणसंडेनो पतिए नो पुफिए नो फलिए नो हरियगरिरेलमायणो सिरीए अईव २ उवसोभेमाणे चिट्टइ तया णं जुन्ने झडे परिसडियपंदुपत्ते सुकरुक्खे इव मिलायमाणे चिट्ठइ तया तथा ण चणे णो रमणिज्जे भवति, जया णं णसालावि गिजइ वाइजह नचिजह हसिजाइ रमिज्जइ तया णं णसाला रमणिजा भवा, जया णं नसाला णो गिजा जाय णो रमिजइ
दीप
अनुक्रम [७५-८०]
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