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आगम
(१३)
[भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः )
---------- मूलं [७५-८०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३], उपांगसूत्र- [२] “राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
श्रीराजप्रश्नी मलयगिरी या वृतिः
धर्मस्वीकाविनयश्व
सू.७६-७
॥१४२ ॥
प्रत सूत्रांक [७५-८०]
पडिवैध०, धम्मकहा जहा चित्तस्स, तहेव गिहिवम्म पडिवाजा२त्ता जेणेव सेयविया नगरी तेणेच पहारेत्थ गमणाए ॥ (सू०७६)॥तरण केसी कुमारसमणे पएर्सि राय एवं वयासी. जाणासि तुम पएसी! कह आयरिया पत्रता, हैता जाणामि, तओ आयरिआ पण ता, तंजहाकलायरिए सिप्पायरिए धम्मायरिए, जाणासिणं तुम पएसी तेस तिहं आयरियाणं कस्स का विणयपडिवत्ती पजियवा?, हता जाणामि, कलायरियस सिप्पायरियस्स उवलेवर्ण समउजणं वा करेजा पुरओ पुष्पाणि वा आगजा मजावेजा मडावेज्जा भोयाविना वा विउलं जीवितारिहं पीइदाण दलए ला पुत्ताणत्ति वितिं कपेजा, जये। धम्नायरियं पालिजा तत्थव वंदेखा णमंतजा सकारजा सम्माना कलागं मंगलं देवर्व चेये पजुवासेना फासुएस. णिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेगं पडिलाभेला पाडिहारिरणं पोटकलामिजासंथारएणं उव. निमंतेजा, एवं च ताव तुम पएसी! एवं जाणासि तहावितुम म वाम वामे गंजाव बहित्ता मम एयमई अक्खामित्ता जेणेव सेवविया नगरी तेगेव पहारेत्य गमगाए, तर णं से पएसी राया केसि कुमारसमगं एवं वदासी-एवं खलुमंते! मम एयारू अझस्थिर जाव समुप्पजिजस्थाएवं खलु अहं देवाणुपियाणं वाम वामेगं जाव वहिएत से खजु मे कर पापमापार रयणीए जाव तेवसा जलसे मेरे परिवाल सहि संपरिबुडाप्त देवा गुथिए वंदिता नमेसितए एत
दीप
अनुक्रम [७५-८०]
Inn१४२॥
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| केसिकुमार श्रमणं पार्वे प्रदेशी राजस्य धर्म-स्विकारम्
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