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आगम
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[भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः )
------------- मूलं [१४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
श्रीराजप्रश्नी मलयगिरीया वृतिः ॥ ११९॥
चित्रस्य धर्ममाप्ति सू०५४
प्रत सूत्रांक [१४]
तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडगतियचउक्कचचरचउमुहमहापहपहेसु महया जणसदेइ वा जणचूहेइ वा जणकलकलेइ वा जणबोलेइ वा जणउम्मीइ वा जणउकलियाइ वा जणसन्निवाएडवा जाव परिसा पज्जुवासह । तए णं तस्स सारहिस्स तं महाजणसईच जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयावे अज्झथिए जाव समुप्पजिस्था,किपणं अज्ज जाव सावत्थीए णयरीए इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा कदमहेइ चा मदमहेइवानागमहेइ वा भूयमहेइ वा जक्खमहेइ वा धूभमहेइ वा चेइयमहेइ वा रुक्खमहेइ वा गिरिमहेइ वा दरिमहेह वा अगडमहेइ वा नईमहेइ वा सरमहेइ वा सागरमहेइ वा जे णं इमे बहवे उग्गा भोगा राइना इक्खागा खत्तिया णाया कोरवा जाव इन्भा इन्भपुत्ता पहाया कयपलिकम्मा जहोववाइए जाव अप्पेगतिया हयगया जाव अप्पेगतिया गयगया पायचारविहारेणं महयार चंदावंदरहिं निग्गकछति,एवं संपेहेइर कंचूहजपुरिस सद्दावेद सहावित्ता एवं वयासीकिण्णं देवाणुप्पिया! अज सावत्थीए नगरीए इंदमहेइ वा जावसागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे उग्गा भोगाणिगच्छति ,तए णं से कंचुईपुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स आगमणगहियविणिच्छए चित्तं सारहिं करयलपरिन्गहियं जाव वढावेत्ता एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पिया ! अज सावत्थीए जयरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वाजेणं इमे वहवे जाव विंदार्षिदएहि निग्गच्छति,एवं खलु भी देवाणुप्पिया! पासावचिज्जे केसीनाम कुमारसमणे जाइसम्पन्ने जाव दूइज्जमाणे इहमागए
दीप अनुक्रम [५४]
॥२१९॥
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| चित्र-सारथिः, तस्य धर्म-प्राप्ति:
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