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________________ आगम (१३) [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:) ---------- मूलं [२९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: सत्रांक [२९] दीप अनुक्रम [२९] द्रविलासिन्यः 'चंदद्धसमनिडालाओ' इति चन्द्रार्द्धसमम्-अष्टमीचन्द्रसमान ललाट यासा तास्तथा 'चंदाहियसोमदसणाओ इति चन्द्रादपि अधिकं सोमं सुभगकान्तिमत् दर्शनम् -आकारो यास तास्तथा उल्का इच उद्योतमानाः 'विज्जुघणमरिचिसूरदिप्पं ततेयअहिययरसन्निकासातो' इति विद्युतो ये घना-बहलतरा मरीचयस्तेभ्यो यच्च मूर्यस्य दीप्यमानं दीप्त-नेजस्तस्मादपि अधिकतरः सन्निकाशः-प्रकाशो यासा तास्तथा, 'सिंगारागारचारुवेसाओ पासाइयाओ दरिसणिज्जाओ पहिरूवाओ अभिरुवाओ चिट्ठति ' इति प्राग्वत् ॥ तेसिणं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस सोलस जालकड़गपरिवाडीओ पन्नना, ते णं जालकडगा सबरयणामया अच्छा जाब पडिरूवा । तेसिणं दाराणं उभओ पासे दुहाओ निसीहियाए सोलस सोलस घंटापरिवाडीओ पन्नत्ता, तासि णं घंटार्ण इमेयारूवे पन्नावासे पन्नने, तंजडा-जंबूणयामईओ घंटाओ वयरामयाओ लालाओ णाणामणिमया घंटापासा तवणिजामइयाओ संखलाओ स्ययामयाओ रज्जूतो, ताओ णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्सराओ सीहस्सराओ दुंदुहिस्सराओ कुंचस्सराओ 'णंदिस्सराओ दिघोसाओ मंजुस्सराओ मंजुघोसाओ सुस्सराओ मुस्सराणिग्योसाओ उरालणं मणुनेणं मणहरेणं कन्नमणनिव्वुइकरेणं सदेणं वे पदेसे सबओ समंता आपरेमाणीओ २ जाव चिट्ठति ॥ तेसिणं दाराणं उभओ पासे दहश्रो णिसीहियाए सोलस सोलस वणमालापरिवाडीओ पन्नताओ, REscands सूर्याभविमानस्य वर्णनं ~140
SR No.035015
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages314
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size68 MB
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