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________________ आगम (११) भाग-१४ "विपाकश्रुत" - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्तिः ) श्रुतस्कंध: [१], ---------------------- अध्ययन [५] ----------------------- मूलं [२५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[११], अंगसूत्र-[११] विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरिरचिता वृत्ति: विपाके श्रुत०१ ५ ब्रहस्प. परखीतोनाशः सू२२ प्रत सूत्रांक संपलग्गे यावि होत्था पउमावईए देवीए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरह, इमं च णं उदायणे राया बहाए जाब विभूसिए जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, वहस्सतिदत्तं पुरोहियं पउमावतीदेवीए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणं पासति आसुरुत्ते तिवलिं भिउडि साहहषहस्सतिदत्तं पुरोहियं पु- रिसेहिं गिण्हावेति जाव एएणं विहाणेणं वजनं आणाविए, एवं खल्लु गोयमा! वहस्सतिदत्ते पुरोहिए पुरापोराणाणं जाब विहरह । वहस्सतिदत्ते णं भंते! दारए इओ कालगए समाणे कहिं गच्छिहिति कहिं| उववजिहिति?, गोयमा! बहस्सतिदत्ते णं दारए पुरोहिए चोसहि वासाई परमाउयं पालहत्ता अजेय तिभा-| गावसेसे दिवसे सूलीयभिन्ने कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए संसारो तहेव पुढवी, ततो हत्थिणाउरे नगरे मिगत्ताए पचायाइस्सति, से णं तत्थ वाउरितेहि चहिए समाणे तत्थेव हत्थिणाउरे नगरे सेडिकुलंसि पुत्तत्ताए०, बोहिं. सोहम्मे कप्पे विमाणे महाविदेहे चासे सिज्झिहिति निक्खेचो । (सू०२५)॥ पंचमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥५॥ [२५] दीप अनुक्रम ॥६९॥ अत्र मूल संपादने शीर्षक-स्थाने सूत्र-क्रमांकने एका स्खलना दृश्यते- यत् सू० २५ स्थाने सू० २२ इति क्रम मुद्रितं अत्र पंचमं अध्ययनं परिसमाप्तं ~844
SR No.035014
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 14 Vipakshrut and Auppatik Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages384
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size81 MB
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