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आगम (१२)
भाग-१४ “औपपातिक" - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
----------- मूलं [४०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[११], अंगसूत्र-[११विपाकश्रुत” मूलं एवं अभयदेवसूरिरचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [४०]
औपपा- अजीवा सेऽविय दिपणे णो चेव णं अदिपणे सेऽविय दंतहत्थपायचाचमसपक्खालणड्याए पिवित्तए वा अम्मडा. तिकम् 18 णो चेव णं सिणाइत्तए, अम्मडस्स कप्पड़ मागहुए य आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, सेऽविय वहमाणे जाव 31
दिन्ने नो चेवणं अदिपणे सेऽविय सिणाइत्तए णो चेच णं हत्थपायचरुचमसपक्खालणठ्याए पिवित्तए वासू अम्मडस्स णो कप्पड अन्नउस्थिया वा अपणउत्थियदेवयाणि वा अण्णउत्थिपपरिग्गहियाणि वा चेहयाई वंदित्तए वा णमंसित्तए वा जाव पजुवासित्तए वा णण्णत्व अरिहंते चा अरिहंतचेइयाई वा । अम्मडे णं भंते ! परिव्वायए कालमासे कालं किचा कहिं गच्छिहिति? कहिउववजिहिति, गोयमा! अम्मडे णं परिब्वायए उच्चावएहिं सीलब्वयगुणवेरमणपश्चक्खाणपोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहई वासाई समणोवासयपरियायं पाउणिहिति २त्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए 2-13 दित्ता आलोइयपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा भलोए कप्पे देवत्ताए उववजिहिति, तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं अम्मडस्सवि देवस्स दस सागरोवमाई ठिई। से णं भंते ! अम्मडे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिहक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता
R||||९७॥ - कहिं गच्छिहिति कहिं उववनिहिति', गोयमा! महाविदेहे वासे जाइंकुलाई भवंति अढाई दित्ताई वित्ताई विच्छिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाई बहुधणजायरूवरययाई आओगपभोगसंपउत्ताई विच्छड्डियपउरभत्तपाणाई बहुदासीदासगोमहिसगवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाई तहप्पगारेसु कुलेसु
-FFESCOREGAON
दीप अनुक्रम
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अंबड-परिव्राजकस्य कथा
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