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आगम (१२)
भाग-१४ “औपपातिक" - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
----------- मूलं [४०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[११], अंगसूत्र-[११विपाकश्रुत” मूलं एवं अभयदेवसूरिरचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [४०]
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अम्मडे परिव्वायए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइत्तए ?, णोइणड्ढे समहे, गोयमा! अम्मडे णं परिब्वायए समणोवासए अभिगयजीवाजीचे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरह, णवरं जसियफलिहे अवंगुदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेसी ण वुच्चइ अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स थूलए पाणाइवाए पञ्चक्खाए जावज्जीवाए जाव परिग्महे णवरं सव्वे मेहुणे पचक्खाए जावज्जीवाए, अम्मडस्स णं णो कप्पड़ अक्खसोतप्पमाणमेतंपि जलं सयराहं उत्तरित्तए णण्णस्थ अद्धाणगमणेणं, अम्मडस्स ण णो कप्पइ सगई एवं चेव भाणियन्वं जाव णण्णत्व एगाए गंगामट्टियाए, अम्मडस्स णं परिब्वायगस्स णो कप्पइ आहाक|म्मिए वा उद्देसिए वा मीसजाए इवा अज्झोअरए इ वा पूइकम्मे इ वा कीयगडे इ वा पामिचे इ वा अणिसिहे इ वा अभिहडे इ वा ठहत्तए वा रइत्तए वा कंतारभत्ते इ वा दुबिभक्खभत्ते इ वा पाहुणगभत्ते इ वा गिलाणभत्ते इ वा बद्दलियाभत्ते इ वा भोत्तए वा पाइत्तए वा, अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्प मूल भोयणे वा जाव बीयभोयणे वा भोत्तए वा पाइत्तए वा, अम्मडस्स णं परिब्वायगस्स चउब्धिहे अणत्थदंडे पञ्चक्खाए जावज्जीवाए, तंजहा-अवज्झाणायरिए पमायायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे, अम्मडस्स कप्पड मागहए अदाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए सेऽविय वहमाणए नो चेव णं अवहमाणए जाव सेविय पूए नो चेव णं अपरिपूए सेविय सावजेत्तिकाऊंणो चेव णं अणवजे सेविय जीवा इतिकट्ठणो चेच
१ नेदं प्रत्यन्तरे णवरमित्यावितः.
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दीप अनुक्रम
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अंबड-परिव्राजकस्य कथा
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