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________________ आगम (१२) भाग-१४ “औपपातिक" - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ------------- मूलं [...३४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[११], अंगसूत्र-[११विपाकश्रुत” मूलं एवं अभयदेवसूरिरचिता वृत्ति: औपपा- श्रीवीरदे० प्रत तिकम् भोगपरिभोगपरिमाणं, चत्तारि सिक्खावयाई, तंजहा-सामाइअं देसावगासियं पोसहोववासे अतिहिनाद सिहाववास अतिहिस- यअस्स विभागे, अपच्छिमा मारणंतिआ संलेहणाजसणाराहणा अपमाउसो! अगारसामइए धम्मे पण्णसे. धम्मस्स सिक्खाए उचाहिए समणोचासए समणोवासिआ वा विहरमाणे आणाइ आराहए भवति । अर सू०३४ सूत्रांक ॥८॥ [३४] ********* 'अपपिछमा मारणन्तिया सलेहणाझुसणाराहणा' अपच्छिमत्ति-अकारस्थामङ्गलपरिहारार्थखात्पश्चिमा-पश्चात्कालभा-IA | विनी अत एव मारणान्तिकी मरणरूपे अन्ते-अवसाने भवा मारणान्तिकी संलेखना-कायस्य तपसा कृशीकरणं तस्याः। जूषणा-सेवा संलेखनाजूषणा आराधना-ज्ञानादिगुणानां विशेषतः पालना ॥ ३४ ॥ तए णं सा महतिमहालिया मणूसपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म | | हतुजावहिअया उडाए उद्वेति, उढाए उहित्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुसो आयाहिणं पयाहिणं || || करेइरत्ता चंति णमंसति वंदित्ता णमंसित्ता अत्धेगइआ मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइए,॥४ अत्धेगइआ पंचाणुब्बइयं सत्तसिक्खाबइ दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवण्णा, अवसेसा णं परिसा समणं मा भगवं महावीरं वंदति णमंसति वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सुअक्खाए ते भंते !णिग्गंथे पावणे M |एवं सुपपणसे सुभासिए सुविणीए सुभाविए अणुत्तरे ते भंते! णिग्गंधे पावयणे, धम्म णं आइक्खमाणा तुम्भे उवस आइक्खह, उपसमं आइक्खमाणा विवेगं आइक्खह, विवेगं आइक्खमाणा वेरमणं आइ SAGAR गाथा: ** दीप अनुक्रम [३४-४०] ॥८२॥ भगवत् महावीरस्य धर्मदेशनया: [प्रवचनस्य] वर्णनं ~303~
SR No.035014
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 14 Vipakshrut and Auppatik Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages384
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size81 MB
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