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________________ आगम (८) भाग [१३] “अन्तकृद्दशा” – अंगसूत्र-८ (मूलं+वृत्तिः ) वर्ग: [८], ----------------------- अध्य यनं [१, २] --------------------- मूलं [१७, १८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [८, अंगसूत्र- [८] "अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: अन्तकृत शार प्रत सूत्रांक ॥ २७॥ जलते. अज्जचंदणं अन्नं आपुच्छित्ता अजचंदणाए अजाए अब्भणुनायाए समाणीए संलेहणाझूसणा भत्त- पाणपडि कालं अणवख० विहरेत्तएसिक एवं संपेहेति २ कल्लं जेणेव अजचंदणा अजा तेणेच उ०२ अज्जचंदणं वंदति णमंसति एवं व०-इच्छामि णं अजो। तुब्भेहिं अन्भणुण्णाता समाणी संलेह जाव विहरेत्तते, अहामुहं०, काली अज्जा अजचंदणाते अन्भणुण्णाता समाणी संलेहणाझूसिया जाव विहरति, सा काली अजा अजचंदणाए अंतिते सामाइयमाझ्याई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुन्नाई अह संवच्छराई सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेत्ता सढि भत्तातिं अणसणाते छेदेत्ता जस्सहाए कीरति जाव चरिमुस्सासनीसासेहिं सिहा ५, णिक्खेवो अज्झयणं । (सू०१७) तेणं का०२ चंपानामनगरी पुन्नभद्दे चेतिते कोणिए राया, तत्थ णं सेणियस्स रन्नो भजा कोणियस्स रपणो चुल्ल-द माउया सुकालीनाम देवी होत्था जहा काली तहा सुकालीवि णिक्खंता जाव बहूहिं चउत्थ जाव भावे विहरति, त० सा सुकाली अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव अजचंदणा अजा जाव इच्छामि णं अज्जो! तुब्भेहिं अभणुनाता समाणी कणगावलीतवोकम्म उवसंपत्तिाणं विहरेत्तते, एवं जहा रयलावली तहा कणगाव-18 लीवि, नवरं तिसु ठाणेसु अट्ठमाई करेति जहा रयणावलीए छट्ठाइं एकाए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा ८ वर्गे सुकाल्यध्ययनं २ कनकावलीत. सू०१८ [१७,१८] दीप अनुक्रम [४६-५१] ॥२७॥ १ 'कणगावलि त्ति कनकमयमणिकरूप आभरणविशेषः । सुकालिराणी-तस्या दीक्षा एवं कनाकावली तप: वर्णनं ~173~
SR No.035013
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 13 Upasakdasha Antkruddasha Anuttaropapatikdasha Prashnavyakaran Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages538
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size118 MB
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