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________________ आगम भाग [१३] “अन्तकृद्दशा” – अंगसूत्र-८ (मूलं+वृत्तिः ) वर्ग: [१], ----------------------- अध्य यन [१-१०] ----------------------- मूलं [१] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [८], अंगसूत्र- [८] "अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक अन्तकृHE कह- यमढे पन्नत्ते अट्ठमस्स णं भंते ! अंगस्स अंतगडदसाणं समणेणं के अढे पपणत्ते?, एवं खलु जंबू! समणेणं- १ शाळे जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अह वग्गा पन्नत्ता, जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं १ध्ययन अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अह वग्गा पन्नत्ता पढमस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव। ॥१॥ संपत्तेणं कह अज्झयणा पन्नत्ता, एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं 31 पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं०-गोयम समुद्द सागर गंभीरे चेव होइ थिमिते य । अयले| कंपिल्ले खलु अक्खोभ पसेणती विण्हू ॥१॥ जति णं भंते! समणेणं जाव संप० अट्ठमस्स अंगस्स अंत गडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं समलणं जाव संपत्तेणं के अढे पन्नत्ते?, एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं २ पारवतीणाम नगरी होत्था, दुवालस-| जोयणायामा नवजोअणविधिण्णा धैणवइमतिनिम्माया चामीकरपागारा नाणामणिपंचवन्नकविसीसगर्म४ डिया सुरम्मा अलकापुरिसंकासा पैमुदितपक्कीलिया पञ्चक्खं देवलोगभूया पासादीया ४, तीसे णं बारवती नयरीए बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीमागे एत्थ णं रेवतते नाम पन्वते होव्या, तत्थ णं रेवतते पन्वते नंदण गाथा: दीप अनुक्रम [१-५]] १ गोयमे'त्यादिगाथाऽध्ययनसङ्ग्रहार्था, २ घणवइमइनिम्माया' इति वैश्रमणबुद्धिविरचिता ३ 'अलयापुरिसंकासत्ति अलकापुरी-वैश्रमणयक्षपुरी तत्सदृशी ४'पमुहयपक्कीलिय'त्ति तन्निवासिजनानां प्रमुदितत्वप्रक्रीडितत्वाभ्यामिति । SAREauratonand | बारावतीनगर्या: संक्षिप्त-वर्णनं ~121
SR No.035013
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 13 Upasakdasha Antkruddasha Anuttaropapatikdasha Prashnavyakaran Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages538
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size118 MB
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