SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्धः [१] ----------------- अध्ययनं [१], ----------------- मूलं [१८-२१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत कथाङ्गम. सूत्रांक [१८-२१] वाज णबोलेइ वा जणकलकलेह वा जणुम्मीइ वा जणुकलियाइ वा जणसभिवाएइ वा बहुजनो अन्नमवस्स एवमाइक्खइ एवं उरिक्षत पनवेइ एवं भासइ एवं परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे ३ आइगरे तित्थगरे जाव संपाविउकामे पुवाणुशुचि चरमाणे ज्ञाते श्री गामाणुगामं दूइजमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं उग्महं उग्गि-18 वीरसम॥१४॥ हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरह-तं महाफलं खलु भो देवाणुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नाम-18वसरणं हा गोयस्सवि सवणयाए किमंग पुण अभिगमणवंदणणमंसणपडिपुच्छणपञ्जुवासणयाए, एमस्सपि आयरियस्स धम्मियस्सस. २१ सुवयणस्स सवणयाए किमंग पूण विउलस्स अट्ठस्स महणयाए, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समर्ण भगवं महावीरं वंदामो नमसामो सकारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जवासामो एवं नो पेञ्चभवे हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए। अणुवामित्ताए भविस्सइत्तिककुत्ति 'बहवे उग्गा' इह यावत्करणादिदं द्रष्टव्यं-उग्ग'चा भोगा भोगपुत्ता एवं राइना खत्तिया माहणा भडा जोहा मल्लई लेच्छाई अमेय बहवे राईसरतलवरमाडबियकोईवियइब्भसेडिसेणावहसत्यवाहप्पभियजओ अप्पेगइया बंदणवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं एवं सकारखचियं सम्माणवत्तियं कोउहल्लवत्तिय असुयाई सुणिस्सामो सुबाई निस्संकियाई करिस्सामो अप्पे० मुंडे भविता आगाराओ अणगारियं पवइस्सामो अप्पे० पंचाणुबइयं सत्चसिक्खावइयं दुवालसषिदं गिदिधम्म पडिबज्जिस्सामो अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अपेगइया जीयमेयंतिकट्ठ ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छिता सिरसाकंठेमालकडा आविद्धमणिसुवन्ना कप्पियहारहारतिसरयपालंबपलंचमाणकडिसुत्तयमुकयसोभाभरणा पवरवत्थपरिहिया चंदणीबलित्चगायसरीरा अप्पेगझ्या हयगया एवं गयरहसिवियासंदमाणिगया अप्पेगइया पायचिहारचारिणो पुरिसवग्गुरापरिखिता 8380902 दीप अनुक्रम [२५-३० ~98~
SR No.035012
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages522
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size113 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy