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________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [१२५-१३१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: - गच्छह णं तुम्भे देवा० ! गंगामहानदि उत्तरह जाव ताव अहं सुट्टियं लवणाहिबई पासामि, ततेणे ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा जेणेव गंगामहानदी तेणेव उ०२ एगट्टियाए णावाए मग्गणगवेसणं करेंति २ एगट्टियाए नावाए गंगामहानदि उत्तरंति २ अण्णमण्णं एवं चयन्ति-पह देवा! कण्हे वासुदेवे गंगामहाणदि बाहाहिं उत्तरिसए उदाहु णो पमू उत्सरित्सएतिकट्ठ एगडियाओ नावाओ मेति २ कण्हं वासुदेवं पडिवालेमाणा २ चिट्ठति, तते णं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवई पासति २ जेणेव गंगा महाणदी तेणेव उ०२ एगट्टियाए सवओ समता मग्गणगवेसणं करेति २ एगडियं अपासमाणे एगाए वाहाए रहं सतुरगं ससारहिं गेहइ एगाए थाहाए गंगं महाणर्दिबासर्टि जोयणार्ति अजोयणं च विच्छिन्नं उत्तरिउं पयत्ते यावि होत्था, तते णं से कण्हे वासुदेवे गंगामहाणदीए बहुमज्झदेसमागं संपत्ते समाणे संते तंते परितंते बद्धसेए जाए याचि होत्या, तते णं कण्हस्स वासुदेवस्स इमे एयारूवे अम्भत्थिए जाव समुप्पज्जित्था-अहो णं पंच पंडवा महाबलवगा जेहिं गंगामहाणदी बासहि जोयणाई अजोयणं च विच्छिण्णा बाहाहिं उत्तिण्णा, इच्छंतएहिं णं पंचहिं पंडबेहि पउमणाभे राया जाव णो पडिसेहिए, तते णं गंगादेवी कण्हरस वासुदेवस्स इमं एयारूवं अम्भत्थियं जाव जाणित्ता थाहं वितरति, तते णं से कण्हे वासुदेवे मुहुर्सतरं समासासति २ गंगामहाणदि बावहि जाव उत्तरति २जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवा०पंच पंडवे एवं व०-अहो णं तुम्भे देवा! ~457
SR No.035012
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages522
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size113 MB
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