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________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [१२५-१३१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: वासुदेवस्स इमेयारूवे अम्भत्थिए समुप्पवित्था-किं मण्णे धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोचे वासुदेवे समुप्पण्णे ? जस्स णं अयं संखसदे ममंपिव मुहवायपूरिते वियंभति, कविले वासु० सदाति सुणेइ, मुणिसुधए अरहा कविलं वासुदेवं एवं व०-से गूणं ते कविला वासुदेवा! मम अंतिए धम्मं णिसामेमाणस्स संखसई आकण्णित्ता इमेयारूवे अन्भस्थिए-किं मन्ने जाब वियंभइ, से पूर्ण कविला वासुदेवा! अयमट्टेसमहे?, हता! अस्थि, नो खलु कविला! एवं भूयं वा ३ जन्नं एगे खेत्ते एगे जुगे एगे समए दुवे अरहंता वा चक्कवट्टी बा बलदेवा वा वासुदेवा वा उप्पजिसु उप्पजिति उप्पज्जिस्संति वा, एवं खलु वासुदेवा ! जंबुदीवाओ भारहाओवासाओ हस्थिणाउरणयराओ पंडस्सरण्णो सुण्हा पंच पंडवाणं भारिया दोवती देवी तव पउमनाभस्स रपणो पुषसंगतिएणं देवेणं अमरकंकाणयरिं साहरिया, लते णं से कण्हे वासुदेव पंचाहिं पंडवेहिं सहि अप्पछट्टे छहिं रहेहिं अमरकंकरायहाणि दोवतीए देवीए कूवं हवमागए, ततेणं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स पउमणाभेणं रपणा सद्धिं संगाम संगामेमाणस्स अयं संखसहे तव मुहवाया० इव इहे कंते इहेव वियंभति, तए णं से कविले चासुदेवे मुणिसुवयं वंदति २ एवं व०-गच्छामि णं अहं भंते! कण्हं वासुदेवं उत्तम पुरिसं सरिसपुरिसं पासामि, तए णं मुणिसुधए अरहा कविलं वासुदेवं एवं व०-नो खलु देवा०! एवं भूयं वा ३ जपणं अरहंता वा अरहंतं पासंति चकवट्टी वा चक्कवहि पासंति बलदेवा वा बलदेवं पासंति वासुदेवा वा वासुदेवं पासंति, तहविय णं तुम कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुई ~455
SR No.035012
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages522
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size113 MB
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