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________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१३], ----------------- मूलं [९५] + गाथा पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [९५ गाथा णं जाव संपत्ताणं नमोऽत्थु णं मम धम्मायरियस्स जाव संपाविउकामस्स पुषिपिय णं मए समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतिए धूलए पाणातिवाए पचक्खाए जाब थूलए परिग्गहे पचक्खाए, तं श्याणिपि तस्सेच अंतिए सर्व पाणातिवायं पञ्चक्खामि जाव सर्व परि० पच जावजीवं सबं असण ४ पच जावजीवं जंपिय इमं सरीरं इ8 कंतं जाव मा फसंतु एयंपिणं चरिमेहि ऊसासेहि बोसिरामित्तिकट्ट, तए ण से दहुरे कालमासे कालं किचा जाव सोहम्मे कप्पे दहरवर्डिसए विमाणे उववायसभाए दहरदेवत्ताए उचबन्ने,एवं खलु गो० ददुरेणं सा दिवा देविड्डी लद्धा ३१ ददुरस्स णं भंते ! देवस्स केवतिकालं ठिई पण्णत्ता ?, गोचत्तारि पलिओवमाई ठिती पं०, सेणं ददुरे देवे० महाविदेहे वासे सिजिनहिति बुझिजाच अंतं करेहिइ य। एवं खलु समणेणं भग. महावीरेणं तेरसमस्स नायजमयणस्स अयम? पण्णत्तेत्तिवेमि ॥ (सूत्र ९५) तेरसमं णायज्झयणं समत्तं ॥१३॥ 'सासे'त्यादि श्लोकः प्रतीतार्थः, नवरं 'अजीरए'ति आहारापरिणतिः 'दिट्टीमुद्धसूले'चि दृष्टिशूल-नेत्रशूल। मर्द्धशूलं-मस्तकशूलं, 'अकारए'ति भक्तद्वेषः 'अच्छिवेयणे'त्यादि श्लोकातिरिक्तं, 'कंड'त्ति खर्जुः, 'दउदरे'ति दकोदरं जलोदरमित्यर्थः, 'सस्थकोसे'त्यादि, शस्त्रकोश:-क्षुरनखरदनादिभाजनं स हस्ते गतः-स्थितो येषां ते तथा, एवं | सर्वत्र, नवरं शिलिकाः-किराततिक्तकादितृणरूपाः प्रततपाषाणरूपा वा शस्त्रतीक्ष्णीकरणार्थाः, तथा गुटिका-द्रव्यसंयोगनिप्पादितगोलिकाः ओषधभेषजे तथैव 'उच्चलणेही त्यादि उद्वेलनानि-देहोपलेपन विशेषाः यानि देहाद्धस्तामर्शनेनापनीयमा दीप अनुक्रम [१४६-१४७] Tweeeee SAREnaturmanand Humstaram.org नन्द-मणिकारस्य दर्दुरक-जन्मस्य घटना ( नन्द मणिकार का दर्दुरकरूपे जन्म और वो दर्दुरक के व्रत-ग्रहण कि अभूतपूर्व घटना ) ~375
SR No.035012
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages522
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size113 MB
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