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________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१३], ----------------- मूलं [९५] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक ज्ञाताधर्म [९५] कथाङ्गम्. ॥१८॥ उवसामेत्तए तस्स णं दे! मणियारे विउलं अत्थसंपदाणं दलयतित्तिकटु दोचंपि तचंपि घोसणं . घोसेह २ पञ्चप्पिणह, तेवि तहेव पचप्पिणति, तते णं रायगिहे इमेयारूवं घोसणं सोचा णिसम्म बहवे वेजा य वेजपुसा य जाव कुसलपुत्ता य सत्थकोसहत्थगया य कोसगपायहस्थगया य सिलियाहत्थगया य गुलिया०य ओसहभेसज्जहत्थगया य सएहिं २ गिहेहिंती निक्खमंति २ रायगिह मझमज्झेणं जेणेच गंदस्स मणियारसेहिस्स गिहे तेणेव उवा०२ गंदस्स सरीरं पासंति, तेसिं रोयायंकाणं णियाण पुच्छंति गंदस्स मणियार बहहिं उचलणेहि य उवणेहि य सिणेहपाणेहि य चमणेहि य विरेयणेहि यसेयणेहि य अवदहणेहि य अवण्हाणेहि य अणुवासणेहि य बत्थिकम्मेहि य निरूहेहि य सिरावेहेहि य तच्छणाहि य पच्छणाहि य सिरावेढेहि य तप्पणाहि य पुढवाएहि य छल्लीहि य वल्लीहि य मूलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसज्बेहि य इच्छति तेसि सोलसहं रोयायंकाणं एगमवि रोयायंकं उवसामित्तए, नो चेव णं संचाएति उवसामेसए, तते णं ते बहवे बेज्जा य ६ जाहे नो संचाएंति तेसिं सोलसण्हं रोगाणं एगमवि रोगा० उच० ताहे संता तंता जाव पडिगया । तते णं नंदे तेहिं सोलसेहिं रोयायंकेहिं अभिभूते समाणे गंदापोक्खरणीए मुछिए ४ तिरिक्खजोणिएहिं निवद्धाउते बद्धपएसिए अदुहद्दवसट्टे कालमासे कालं किच्चा नंदाए पोक्खरणीए दहुरीए कुञ्छिसि दहुरत्ताए उबवन्ने । तए णं गंदे दहुरे गम्भाओ विणिम्मुक्के १३दर्दुरज्ञाता०नन्दस्य रोगोत्पादमृतिदर्दुरत्वदेवत्वादिसू.९५ गाथा दीप अनुक्रम [१४६-१४७] ॥१८॥ ... अत्र मूल-संपादने सूत्रक्रमांकने एक: मुद्रण-दोष: वर्तते-सूत्र ९४ स्थाने सूत्र ९५ मुद्रितं (सूत्र-९४ क्रम भूल गये है और सूत्र ९५ लिख दिया है) दर्दुरकदेवस्य पूर्वभव - नन्द-मणिकारश्रेष्ठिन: कथा एवं नन्दस्य मृत्युः, दर्दुरकत्वेन नन्दस्य उत्पत्ति: ~372
SR No.035012
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages522
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size113 MB
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